Sunday, February 15, 2015

मैं एक बेटी हूँ

Disclaimer:
This story was broadcasted by All India Radio (AIR) on 15 January 2015 from Visakhapatnam station.


                                                                Present day
इस धरती पर जी रहे मुझे पच्चीस साल बीत गए थे,  कुछ भी ख़ास नही किया था मैने , एक बहुत ही आम ज़िन्दगी है मेरि. सभी बच्चों की तरह मैंने पढाई की, और  पढाई के बाद नौकरी,  महिने के शुरुआत में सैलरी मिलती है और महीने के अंत तक खत्म भी हो जाती है. शनिवार और रवि वार को माता-पिता और बेहेन के साथ वक़्त बिताती हूँ और सोमवार से शुक्रवार तक दफ्तर में समय चला जाता है. अगर देखा जाये तो मेरी जैसी ज़िन्दगी करोडो लोग जी रहे हैं पूरी दुनिआ में , मेरा तो कभी इस बात पर ध्यान भी नहीं गया था की मेरा इस दुनिया में अब तक जीने का एक मकसद था, आगे जितने भी साल जीऊँगी मैं बस उस एक मकसद के लिए ही जीऊंगी. 
हमारे परिवार में बस चार ही लोग हैं, और हम बहुत सुखी परिवार हैं, जहाँ आजकल की दुनिआ में बहनो की आपस में नहीं पटती , वहीँ हम दोनों बहेनो में इतना प्यार की सभी हमें एक आदर्श बहेनो का जोड़ी मानते हैं. हमारे पिताजी ने बहुत ही कम उम्र मेंमें परिवार का बोझ संभाल लिए था , फिर शादी के बाद तो माँ , मैं और मेरी छोटी बेहेन, हम सुब उनकी ज़िम्मेदारी बन गये. जैसा मैंने दादी  से सुना था, गाओं में सबसे तेज दिमाग मेरे पिताजी की थी, पर ज़िम्मेदारी सँभालते -सँभालते ज्यादा पढाई नहीं कर सके. पर उनका यह सपना पूरा हो इसकी ज़िम्मेदारी मेरी माँ ने लिया था. जब हम दोनों बहनें नौकरी करने लगी तो पिताजी ने नौकरी के साथ साथ अपनी पढाई भी की, जिससे आगे चल कर उन्हें प्रमोशन भी मिला. मैं यह कह सकती हूँ की हमारे परिवार का हर सदस्य  एक दुसरे के सपने को साकार करने में मदद करता है. 
मेरी दादी के तीन बेटे हैं, वह साल के चार महीने हमारे साथ बिताती है, उस साल जब हमारी दादी हमारे साथ रहने आई थी किसे पता था की वह आखरी बार उनका आना था, उसके बाद मेरे चाचाजी के साथ रहते वक़्त उनका देहांत हो गया थ. जो चार महीने हमारे साथ रही, पता नहीं इसे मैं एक आम घटना कहूँ या अलौकिक, मेरी दादी ने मुझसे वो राज़ कही, जिससे मुझे मेरे जीने का मतलब मिल गया था। 
हम चारों में से कोई भी दादी को पूरे हफ्ते ज्यादा वक़्त नहीं दे पातें थे,पर जब भी किसीकी छुट्टी होती थी तो हम दादी को वक़्त ज़रूर देते , खासकर शनिवार और रविवार को. ऐसे ही एक शनिवार की दोपहर को मैं और दादी बिस्तर पर लैटे थें ,  मेरी माँ और बेहेन दुसरे कमरे में सो रहे थे, मैं और दादी पुरानी बातों को याद कर रहे थे और उनका हाथ मेरे बालों में था जिन्हे वो धीरे धीरे सहला रही थी। 
"आज जो तुम इतनी हटती खट्टी हो पता है यह सुब मेरे तेल मालिश का नतीजा है , पूरे छ  महीने तक तो मैंने ही तुम्हारी मालिश की थी". ----- दादी ने मेरे बालों को सहलाते हुए कहा। 

मैंने दादी को ज़ोर से जकड़  कर बोला 

"हैं मुझे पता है, माँ ने कहा था, अच्छा दादी बताओ, उस ज़माने में जब सभी लड़को को महत्त्व देते थे , तब आपने मेरे लिए इतना कुछ किआ? मैं तो लड़का नहीं हूँ"
                                                            ------- मैंने दादी से पुछा 
" तो क्या हुआ तुम हमारे खानदान की पहली संतान थी, और फिर तुम्हारे बाद तुम्हारा भाई भी तो आने वाला था"
                                                 --------- दादी ने कहा। 

"मतलब" -----मैंने  पुछा और उठ कर बैठ गयी. 

मुझे जानना था दादी किस भाई की बात कर रही थी, मेरे बाद तो मेरी बहन है। 

"दादी बताओ मुझे किस भाई की बात कर रही हो आप" ? ----- मैंने ज़िद्दी  होकर दादी से पुछा। 

                                                              Flash Back

शादी के दो साल बाद, अमित और तृषा को एक बेटी हुई थी, यह समय तब की है जब हमारे देश को कुछ ही साल बाद एक महिला प्रधान मंत्री मिलने वाली थी।  1982 उन्नीसो बयासी में राय परिवार को एक पोती मिली , यह संतान परिवार के सबसे बड़े बेटे की थी और परिवार की पहली पोती।  उन दिनों जब सभी दादा-डटी यही चाहते थे की उनकी   रहे तब उनको  मिली पर फिर भी खुशियों में  थी। उनको तो बस दादा-दादी बनना था , चाहे वह पोता  पोती।  घर में जशन का माहोल था ,उस परिवार की सबसे छोटी बेटी जो की अब सिर्फ 10 साल की ही थी , उसने अपने गुड़ियों से खेलना छोड़कर अपनी भतीजी के साथ ही खेलती रहती।  दादी तो हर रोज़ आँगन में बैठकर उस बच्ची की तेल मालिश करती थी, और दादाजी दफ्तर से लौटकर, रामायण से उस बच्ची  के लिए उपयुक्त  नाम। 
 ढूँढ़ते थे। 
किसी दादा दादी का अपनी पोती से इतना ज्यादा प्यार, वो भी तब जब बेटियों को पैदा होते ही तुच्छ मन जाता था ,बेटी को जनम देने वाली माँ पर भी अत्याचार किए जाते थे। पोती के जनम पर दादा-दादी ने घर पर दावत रखी , जिसमें पूरे गाँव  को शानदार भोजन कराया गया, ब्राह्मणो को अलग से शाकाहारी भोजन परोसा गया।  उस परिवार में समां ऐसा था, जैसे पहली बार माता -पिता बनने से भी ज्यादा ख़ुशी उनको मिली जो पहली बार दादा- दादी बने थे। उस दावत के दीन बच्ची का नाम "सबरी" रखा गया, यह नाम दादाजी ने रामायण से चुना था।  सबरी रामायण में उस पात्र का नाम है जो जंगल में बेर संग्रह करके उन्हें चखती थी , जो बेर मीठे होते थे उन्हें वो अपनी टोकरी में रख देती थी , इस आस में की एक दिन जब श्री राम वहां से गुजरेंगे तो उसके बेरो को खाएँगे. 
जैसे जैसे सबरी बड़ी होती गयी , उसकी हर चाह को उसके दादा-दादी, बुआ और चाचाओं ने पूरी की।  सबरी के दादाजी को कांच  के बर्तनो का संग्रह करना बहुत पसंद था , एक बार की बात है जब उसके बुआ के हाट से एक प्लेट टूट गयी तो दादाजी के गुस्से से बचने के लिए सभी ने इल्जाम दो साल की सबरी पर दाल दिया , क्यूंकि सभी जानते थे की दादाजी सबरी पर कभी नाराज़ नहीं थे। 

बड़ी ही लाड-प्यार में सबरी बड़ी हो रही थी, अब सबरी चार साल की हो गयी थी, उसे प्रार्थमिक शिक्षा घर पर ही मिलने लगी थी, सभी बहुत उत्सुक थे की अब से एक साल बाद वो  स्कूल भी जाने लगेगी। 
सबरी की दादी की सहेली जो खुद का स्कूल चलती थी, उनके ही स्कूल में भेजने का सभी ने फैसला लिया , ताकी सबरी को स्कूल में अंजानो के बीच तकलीफ न हो , इन्ही सब सपनो के बीच एक दिन सबरी को बुखार हो जाया है। सभहि ने एहि सोचा की कुछ दिनों में उतर जाएगा , क्यूंकि बुखार पहली बार नहीं चढ़ा था उसे।  सबरी सिर्फ पोलियो की बूंदो को लेने के लिए ही सिर्फ अस्पताल जाती थी, वरना उसके छोटी बरी जांच के लिए child specialist को घर पर बुलाया जाता था।  पर इस बार बात कुछ और ही थी। बुखार था की उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था , घर पर सभी बहुत परेशान थे ,उसकी दादी ने हर रोज़ कोई न कोई व्रत रखना शुरू कर दिया था उसकी अच्छी सेहत के लिए , दादाजी ने दफ्तर से एक हफ्ते की छुट्टी ली और शहर के सबसे बड़े child specialist के हाथो सौप  दिए सबरी को और उसके बाद जो बात डॉक्टर ने कही उससे परिवार का हर सदस्य स्तब्ध रह गया।

सबरी के खून के जांच से पता चला था की उसकी दोनों कड़ियाँ शॉट प्रतिशत बेकार हो गयी थी , ऐसे में डॉक्टर ने बता दिया  की बचने के आसार भी चालीस प्रतिशत ही हैं , क्यूंकि सबरी एक स्वस्थ बच्ची थी तो अच्छे इलाज, दवाइयाँ ,पौष्टिक खाना उसे ठीक कर देगा , बस एक ही चीज़ की मनाही थी "नमक" की। सबरी के लिए नमक का एक भी कण भी ज़हर था।  सबरी के साथ उसकी माँ भी हस्पताल में भर्ती हो गयी , उस दिन के बाद,  उसकी माँ ने भी प्रण लिया  की वो भी नमक को नहीं छुएगी, तब तक जब तक उसकी बेटी ठीक नहीं हो जाती है।  खाने को हम कितना भी अच्छा बना ले , पर नमक के बिना, दुनिया का हर स्वादिष्ट खाना बेस्वाद होता है। यह एक माँ का प्रतिज्ञा था खुद से. 

हस्पताल में कुछ ही दिन बीतें थे , इसी दौरान सबरी की माँ को पता चलता  वह दूसरी बार गर्भवती है, उसे कुछ भी सूझ नहीं रहा था , क्यूंकि यह कोई  ख़ुशी कि बात नही  थी उसके लिए . उसकी पेह्ली संतान जीससे  वो इतना प्यार करती ही, उसके बच्ने के सिर्फ चालीस प्रतिशत आसार है , ऐसे मे  वो कैसे दुसरे बच्चे के बारे मेइन सुच सक्ती है ? जिसके अंग भी अब तक बने नही थे , उसने अपने मन मेइन चाल राहे दुविधा को किसी से नाही काही याहन तक कि अपने पती से भी छूपाया . वो कोई निर्णय नाही ले पा रही थी . इस दुविधा मे उसने एक महिना बित दिया अस्पताल मे साबरी के साथ , इसी दौरान , जीन बच्चो को साबरी के जैसी बिमारी थी उनके माओ  के साथ साबरी कि म की भी दोस्ती हुई . उन मे से दो बच्चे अचानक आखरी सास लेते है , इस घटना से साबरी की मा और डर जाती है , और एक फैसला लेती है कि नही चाहिये उसे दुसरा बच्चा , जो जिंदा है वो उसके प्रार्थना का फल  है , वो अपनी बच्ची को दुनिया मे किसी भी चीज से ज्यादा प्यार करती थी , इतना तक कि अपने पती से भी ज्यादा . उसने अस्पताल मेइन एक लैडी डॉक्टर से सलह - माशौरा किया , उसने अपनी दुविधा उस लेडी डॉक्टर से कही -

"जो मेरे अंदर है , उसे मैने देखा नही , मेरा प्यार उसके लिए कैसे बन सकता है , जबकी मेरी पहली बच्ची मौत के पास है "
                                                 ------------यह  बात साबरी कि मा ने डॉक्टर से कही 
" तुम्हे पता भी है , तुम क्या कह रही हो ? यह दुसरा बच्चा लाडका भी हो सक्त है "
                                           ---------------- डॉक्टर ने साबरी के म से कहा 

"मुझे कोई फरक नही पडता है इससे , जो बीमार है , उसे मारते हुए छोड कर , कैसे मै खुद की देख भाल करू ? वो भी उसके लिए जो इस दुनिया मे आय भी नही "
                                               ------------साबरी कि मा ने जवाब दिया . 


साबरी कि मा ने परिवार मे सबकी सेहमती से अपना गर्व्पात करवा दिया , और पत चला कि दुसरे बच्चे का लिंग लाडके का था . 

                                                            Present day

मै हि हू  वह चार साल कि साबरी, जो अब जो अब पच्चिस साल कि युवती है , मुझे तो मेरी मा  और परिवार ने बचा लिया , पर उसके बदले एक मा ने अपने बेटे का और दादा- दादी ने अपने पोते का बलिदान दिया . मुझे अब पत ही की इस दोपहर के बाद मुझे बाकी कि झीन्देगी में क्या करना है . मै  अगर आज जिन्दा  हू , तो सिर्फ उस मा , और उस परिवार के महान सुच कि वजह से जो लाडका -लाडकी मे भेद नाही करते . मुझे इस बात कि ख़ुशी है कि जिस बात को मेरी मा  ने मुझसे कभी नही  कही , वो राज मुझे मेरी दादी से पता तो चली . दुख इस बात का ही कि मेरी दादी का उसके बाद देहान्थ हो गया , मै  उनकी ज्यादा सेवा नाही कर पाई .उङ्के त्याग का फळ उनको जिते जी जरूर मिला , मेरे पहले चाचाजी का पहला बच्चा लडका है , मेरी दादी को पोते का सुख उनके जीवन काल मेइन मिला. 
मै मेरे मत-पिता की  आजीवन आभारी रहूंगी , मुझे तो एक बेटी से भी ज्यादा एक बेटा  बन के जीना है  उनके लिए. जो लडकीयां  शादी के बाद भी अपने मायके के नाम को लेकर चलती  है उनके कई वजह होंगे , पर मेरे लिए "राय " बने रेहने की वजह यह है की मै मेरे हर कामयाबी पर उस परिवार का नाम उंचा करू , जिस परिवार कि मै बेटी हू . 


Wednesday, October 16, 2013

"कर्म करते रहो, फल आज नहीं तो कल मिलना ही है "

लक्ष्मी, यही कोई दस साल बड़ी होगी मुझसे, कुछ महीनो के लिए मेरी सहकर्मी रही।  मेरी एक आदत है की हर वो इंसान जिससे मैं मिलती हूँ ,  उसके बारे मैं अगर कोई बात मुझे ख़ास लगे तो, उससे मैं कुछ न कुछ सीख लेती हूँ।  
लक्ष्मी की कहानी मुझे  बहुत ही ज्यादा ख़ास लगी।  वह एक आदर्श बेटी, आदर्श बहन, और एक आदर्श प्रेमिका है।

बीस साल पहले जब लक्ष्मी सोलह साल की थी,  उसे अपने एक सहपाठी से प्यार हो गया था। चार भाई-बहनों में सबसे बड़ी होने की ज़िम्मेदारी उसके दिल की चाह से भी ज्यादा थी। उसके दिल में पल रहे प्यार को उसने कभी ज़ाहिर ही नहीं किया, न ही उस इंसान को, जिसे मन ही मन चाहती थी, न ही कभी किसी दोस्त से।  वह खूब अच्छी तरह समझती थी समय की मांग उसका प्यार नहीं, बल्कि उसकी जिम्मेदारियां  है।   

उसने पढाई ख़तम की तो तुरंत उसकी नौकरी भी लग गयी, फिर ज़िन्दगी की व्यस्तता में इतनी उलझ गयी की प्यार के लिए कोई वक़्त ही नहीं था उसके जीवन मे।  उसे विदेशो से नौकरियां मिलने लगी, अपनी हर इच्छा भारत में छोड़ कर वो चली गयी सयुंक्त राष्ट्र , वहां से निकल कर कुछ साल वह रही मलेशिया में, फिर भारत लौटने से कुछ साल पहले न्यूजीलैंड में रही। इसी बीच उसने बहुत सारा पैसा कमाया, भाइयों को पढाया, एक मात्र बहन की शादी करवाई। अपने माता -पिता के लिए रहने लायक एक सुंदर सा फ्लैट भी खरीदा। बीस साल अपनों के लिए जीना एक लड़की के लिए बहुत बड़ी बात होती है।  मैं तो लक्ष्मी को उस परिवार के लिए वास्तव में लक्ष्मी  का अवतार ही मानूंगी। 
खुद क्या चाहती है, उसके सारे  सपने, सब कुछ भुलाकर वो अपनों से और अपने देश से दूर, अपने परिवार के लिए जी रही थी। इतने सारे जिम्मेदारियों के बीच लक्ष्मी को उसका प्यार बहुत याद आता था, पर उसे पाने का कोई उपाय नहीं था लक्ष्मी के पास।  आज से पंद्रह साल पहले तो ऑरकुट और फेसबुक भी नहीं थे की हम किसि के साथ संपर्क में रहें। 

इतने सालों में लक्ष्मी की  माँ की तबियत  भी बिगड़ने  लगी, बहन की शादी  हो चुकी थी, एक भाई ने शादी कर ली थी , दूसरा भाई विदेश में रहता था, तो, फिर से माँ की देख रेख की उम्मीद लक्ष्मी पर आकर रुकी। 
जब प्यार नहीं होता है तो इंसान अपने जिम्मेदारियों से ही प्यार करने लगता है, इस बार उसने अपने विदेश की  नौकरी की क़ुरबानी दी और लौट आई भारत। 

भारत में लक्ष्मी को अपनी काबिलियत से कम दर्जे की नौकरी करनी पड़ी, पैसा भी कम ही मिल रहा था, इन सबके बावजूत उसने किस्मत के इस फैसले को भी हस्ते-हस्ते गले लगाया।  लक्ष्मी एक ऐसी लड़की है जिसने अपनी जिम्मेदारियों को अपनी ख़ुशी से भी ज्यादा महत्व दिया। 

मेरा तो ये ही मानना है की इश्वर  कभी किसी पर निष्ठुरता नहीं दिखाता , ख़ास कर जब कोई इंसान बिना किसी उम्मीद के अपना कर्म हस्ते हस्ते करता है। हर इंसान को अपने अच्छे कर्म और त्याग का फल तो मिलता ही है। 
लक्ष्मी कोभी उसके हिस्से की ख़ुशी मिली। उसके बीस साल बाद भारत लौटते ही एक करीबी रिश्तेदार के यहाँ शादी पे गयी, और वहां जो उसे इश्वर ने ख़ुशी दी, उसे पाने के बाद लक्ष्मी को  इस जीवन  से कोई और  इच्छा नहीं रही। उसकी मुलाकात उसके बचपन के प्यार से हो गयी।  
जिसकी यादें भूली बिसरी बातें थी, जिसे पाना  नामुमकिन था, जो सोलह साल का नवयुवक अब एक उनचालीस साल का आदमी बन चूका था, वह तो जैसे ईश्वर के वरदान  के रूप में लक्ष्मी के सामने खड़ा था। 
ऐसे मौको पर प्रेमियों को आस-पास के लोगों से कोई वास्ता नहीं होता, समाज के नियमो की परवाह नहीं होती, तो यह दोनों कहाँ एक दुसरे को सिर्फ देखते रहते? लक्ष्मी के प्यार ने उसे गले लगा लिया। प्रकृति ने आंसू सिर्फ नारियों को ही नहीं दी, ख़ुशी के आंसू तो दोनों की ही आखों में थी। 

"बचपन से मुझे अपने दिल में रखा और एक बार भी मुझे बताया तक नहीं?" -----उसने पुछा। 
"पर यह बात तुमको कैसे पता चला?"-------लक्ष्मी ने पुछा। 
"तुम्हारे जाने  के बाद तुम्हारे ख़ास दोस्तों से पता चला"----उसने जवाब दिया। 
थोड़ी  बहुत शिकायतें , प्यार का इज़हार , ऐसे मौको पर ज़ाहिर सी बात है। 

एक महीने बाद लक्ष्मी अपने प्यार से शादी कर लेती है। वह दोनों किसी पंडित की  सलाह नही चाहते थे, उन दोनों ने लक्ष्मी के जन्मदिन को शादी करने का फैसला किया। यह लक्ष्मी के जीवन का यादगार जन्मदिन था, जब ईश्वर ने उसे उसके प्यार को तोहफे के रूप में हमेशा के लिए दिया। 

लक्ष्मी की प्रेम कहानी, आज कल की पीढ़ी के लिए एक मिसाल है।" कर्म करो फल की आशा न रखो," यही तो सुनते आये हैं हम बचपन से , पर लक्ष्मी के जीवन से मैं यही सीख लूंगी, 
"कर्म करते रहो, फल आज नहीं तो कल मिलना ही है" 






Tuesday, May 1, 2012

I still love you.

Happy was i then,
 when i loved you.
Beautiful was i then,
when i kissed you.
Rain seemed romantic,
when i had you.
Hot summer seemed cool breeze,
when i hugged you.
I don't look at the roses,
they remind me of you,
I truly admit,
that i still love you.

6:59 pm,
29th mar 12.

Friday, February 10, 2012

आसुओ को रोक नहीं पाती हूँ.

जब भी मेरे हाथ उठे,
ईश्वर की आराधना के लिए,
आखों में हमेशा आँसू आये,
ख़ुशी कम, गम के आँसू ज्यादा थे.

इतने सरे गम मिले,
भूल गयी मैं उन्हें गिनते गिनते.
मुसीबतों से उभरने की हिम्मत रखती हूँ,
पता नहीं फिर क्यूँ मंदिर में रोती हूँ?

मन को चैन मिलता है ईश्वर के पास,
लगता है कोई तो है, जो सुन रहा है मुझे आज.
दुनिया के लिए मैं एक सक्षम युवती हूँ,
पर क्या करूँ?
ईश्वर के पास आसुओ को रोक नहीं पाती हूँ.

7:15 pm
10th feb 2012

मेरी ज़िंदगी नहीं है आम

चैन मिलता है आपके पास,
दुनिया से न रही कोई आस.
ज़रूर कोई वजह है ख़ास,
तभी तो मेरी ज़िंदगी नहीं है आम.

नहीं मुकर सकती अपने कर्तव्यों से,
चाहे मेरी खुशियाँ मुझसे छूटे.
मेरी इच्छाओ को भुला चुकी हूँ,
अब तो अपनों के लिए जी रही हूँ.

नहीं है गम इस ज़िंदगी का,
जो हर पल याद दिलाता है अर्पण का,
हर कोई जीता है खुद के लिए,
मुझे मिला है मौका दूसरों के लिए ख़ुशी कमाने का.

7:40 pm 
10th feb 2012

किसी को प्यार करने से कतराता है.

कहतें हैं कायर रोतें हैं.
मैं तो रोती हूँ तब,
अपने ही मुझे समझते नहीं हैं जब.

जिनके लिए दुनिया भुलाया,
उन सब ने मुझे सबसे ज्यादा रुलाया.
अब तो दिल मेरा डरा हुआ है,
किसी को प्यार करने से कतराता है.

इस डर ने किया है इतना मजबूर,
अब तो रहती हूँ मैं दोस्तों से भी दूर.
लोगों से दूरी रखती हूँ,
किताबों की दुनिया में खोई रहती हूँ,
संगीत का मुझे सहारा है,
खुशियाँ मिलेगी मुझे, ईश्वर पर भरोसा है.

7:45 pm
10 feb 2012

Wednesday, November 30, 2011

शायद मुझे ज़रूरत है एक बदलाव की.

छोड दी सारी उम्मीद  मैने,
न रही कोइ आशा इस जीवन से.
मैं तो जी रही हूँ आपनो कि खुशी के लिए,
अब अगर मैन मर भी जाऊ,
न होगी कोइ शिकायत  इश्वर से.


फिर कभी खुद को धिक्कर्त्ति हूँ,
मैं कयारों कि तरह क्युं सोच रही हूँ?
मुझमें है असीम ताकत,
जो पुरी कर सकती है मेरी हर चाहत.


मैं तो कभी न थी हारर्ने वलों में,
मेरी हर हार ने बदाया  है   मुझे जीत कि राह में.
क्युं बदल रही है अचानक सोच मेरी?
शायद  मुझे ज़रूरत है एक बदलाव की.

9.15 pm
27th nov 2011.