जब भी मेरे हाथ उठे,
ईश्वर की आराधना के लिए,
आखों में हमेशा आँसू आये,
ख़ुशी कम, गम के आँसू ज्यादा थे.
इतने सरे गम मिले,
भूल गयी मैं उन्हें गिनते गिनते.
मुसीबतों से उभरने की हिम्मत रखती हूँ,
पता नहीं फिर क्यूँ मंदिर में रोती हूँ?
मन को चैन मिलता है ईश्वर के पास,
लगता है कोई तो है, जो सुन रहा है मुझे आज.
दुनिया के लिए मैं एक सक्षम युवती हूँ,
पर क्या करूँ?
ईश्वर के पास आसुओ को रोक नहीं पाती हूँ.
7:15 pm
10th feb 2012