Saturday, November 20, 2010

मेरी प्रार्थना में तुम्हारा साथ मांगूं.

मेरा जीवन अर्पित तुम्हे,
मेरी सुन्दरता तुम्हारे लिए.
हर वो तारीफ जो मुझे मिलती है,
अच्छी नहीं लगती, जब तक तुम  नहीं अच्छा कहते.


कभी जब मैं पूजा करूँ,
मेरी प्रार्थना में तुम्हारा साथ मांगूं.
चाहे टूटे हर रिश्ता,
तुम्हारा साथ हर जनम मैं चाहूँ.
3.22 am
20th nov 2010

1 comment:

  1. कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।

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