Tuesday, April 20, 2010

मुझे सारे रंग आचे लगते हैं.

पसंद है मुझे रंग गुलाबी,
मुझपे ये लगती है सुहानी,
खिल उठता है मनं मेरा,
जो दिख जाये ये रंग कहीं भी.

वैसे तो रंग सारे मुझे पसंद है,
पर उनमें पिला सबसे उज्जवल है,
पहनो तो रूप रंग खिलता है,
हल्दी तो कीटाणु नाशक होता है.

काले में भी नहीं है कोई खराबी,
मोहक होती है कलि बिंदी,
गोरे चेहरे पे एक कला तिल,
सुन्दरता की होती है निशानी.
9.45 am 09 jan 2010.

2 comments:

  1. काले में भी नहीं है कोई खराबी,
    मोहक होती है कलि बिंदी,
    गोरे चेहरे पे एक कला तिल,
    सुन्दरता की होती है निशानी.

    इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....

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  2. arpita ji maine aapki kafi rachane aaj dekhi
    sab ek se badh kar ek...........

    behtreen rachnaye...


    sanjay bhaskar
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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