कहाँ थी मेरे विशवास में कमी,
की आपने मुझे यह दिन दिखाई?
मैंने हर बाधा को परीक्षा माना,
बिना किसी शिकायत किए उसे अपनाया.
मेरी हर जीत का श्रय जाता है आपको,
फिर हार पर क्यूँ दूं दोष किसी और को?
मेरी सुबह शाम सब आप हो,
फिर क्यूँ दोष दूं हार पर किस्मत को?
गृह तारे अगर किस्मत बनाते हैं,
तो क्यूँ पूजता है संसार ईश्वर को?
पत्थरों का पहनना अगर पलट दे हार जीत में,
तो कोई क्यूँ करे विशवास ईश्वर की भक्ति में?
नहीं जानती कौन सा गृह मुझे हार दिखता है?
पर विशवास चमत्कार का, मुझे आप पर है.
हमेशा की तरह उम्दा रचना..बधाई.
ReplyDeleteवाह .....Arpita जी गज़ब का लिखतीं हैं आप .......!!
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