मैं हूँ दूर बहुत तुमसे,मुझे आती हो याद हर पल,
तुम्हारी मोहक सुन्दरता कर देता है मन मेरा चंचल.
दिखी थी आखरी बार, तुम मुझे बादलों के बीच से,
और मन मेरा बेचैन था, होने पर जुदा तुमसे.
वैसे तो बिकती है यहाँ जीवन की हर ख़ुशी,
चैन मन को देता हो जो, वो हो तुम्ही.
कहाँ सोचा था मैंने? जाना होगा दूर तुमसे,
वादा करता हूँ मैं,जब आऊंगा लौटकर,गर्व होगा तुमको मुझपे.
आज मैं जो भी हूँ,तुम हो वजह उसकी,
दूर देश में नाम हो मेरा,तुम भी तो चाहती थी.
इन्होने मुझे अपनाया,किया मेरा स्वागत है,
चाहे जितना भी प्यार मिले, प्यार मुझे तुमसे ही है.
आ रहा है मित्र मेरा अगले महीने मिलने मुझसे,
भेज देना मिटटी थोडीसी वतन की उसके हाथों से.
लौटकर आऊंगा वापस ना जाने को,
काम ऐसा कर आऊंगा, जिसे पहचाने पूरी दुनिया तुमको.
यह कविता उन प्रवासी भारतीयों के लिए है जो अपनी देश के नाम को उचा करने के लिए विदेशो में बसे है, पर उनको भारत की याद हमेशा आती है. हवाई जहाज़ में खिड़की से अपनी देश की मिटटी को तब तक देखते हैं जब तक बादलों के बीच ना पहुँच जाये.
beautifully expressed
ReplyDeleteएक भावपूर्ण अच्छी रचना..
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