Tuesday, April 20, 2010

कहने को बातें है बहुत

कहने को बातें है बहुत पर सुनता नहीं है कोई,
कितने गीत है गुनगुनाने ,को पर बोल देता नहीं है कोई.
आखें मेरी तरसती है किसी के नज़र को, पर दीखता नहीं है कोई,
मनं करता है प्यार करूँ किसी को, पर प्यारा नहीं है कोई.
चाह है बारिश के बूंदों की पर बदल नहीं है कोई,
पास है मेरे गुच्छा फूलों का, पर गुलदस्ता नहीं है कोई.
पानी से भरा झरना हूँ मैं, बहने के लिए पहाड़ नहीं है कोई,
कहते हैं दोस्त मेरे नगीना हूँ मैं, पर अंगुठी नहीं है कोई.
सुंदर मूरत हूँ मैं पर रंगता नहीं है कोई,
कहने को बातें है बहुत पर सुनता नहीं है कोई.
२८ जनुअरी २००९.
३.४० अ.म

2 comments:

  1. "कहने को बातें है बहुत पर सुनता नहीं है कोई"




    What a wonder... Great!!



    "RAM"

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