Thursday, April 22, 2010

प्यारी स्वाति

मैंने तुम्हे देखा उन लम्हों में,
जब तुम्हे मैं जानती थी बाकि लोगों में.
तुमसे मेरा हर दिन बातें करना,
तुम्हारे हर मज़बूत इरादों को तुम्हारी बातों में सुन ना,
दुनिया की हर बुराई से अकेले लड़ना ,
हर गम को भुलाकर, सबके साथ हसी मज़ाक करना.
तुम्हारी ऐसी कई गुण , ऐसी कई बातें तुम्हारी,
बन्ने को दोस्त तुम्हारी, मुझे मजबूर करती.
दोस्ती ने मुझे तुम्हारी, बनाया है आज एक काबिल लड़की,
किसी भी कठिनाई से अब मैं नहीं डरती.

तुमने अपना वो मुकाम बनाया,
पहुचना चाहता है हर कोई जहाँ.
तुमसे मुझे मिलती है प्रेरणा,
जीतने की अकेले कोई भी समस्या.
एहसास दिलाया है तुमने मुझे,"हो तुम अकेले इस दुनिया में",
"और रहना तैयार खुद को किसी भी मुश्किल से सामना करने".

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