क्या मैं खुश हूँ?
क्यूँ ना यह सवाल मैं अपने दिल से पूछूँ?
एय दिल-
"जिससे मिले भरपूर ख़ुशी, ऐसा मैं क्या करूँ?"
दिल: भुला दो उसे, रुलाया है तुमको जिसने,
भूल जाओ की किया था कभी प्यार किसी से।
था नहीं तुम्हारे असीम प्यार के लायक वो,
जिसके लिए भुला दिया था तुमने खुद को,
खुद के साथ अपनों की ख़ुशी को।
मैं: कहा तो है सही, पर यह काम इतना आसान नहीं,
घाव लगे दिल पे तो भरता आसानी से नहीं।
चाह की भुलादूं सपना समझकर उसे,
पर क्या करूँ ? कई यादें जुडी है उससे।
दिल: समझाओ खुद को, प्यार था वो एक तरफ़ा,
उसने दिल से कभी तुमको नहीं चाह।
रखा था उसने तुम्हे धोखे में,
खेल रहा था वो तुम्हारे जज्बातों से।
मैं: मन की, नहीं था प्यार उसको मुझसे,
पर करती हूँ याद अब भी उससे।
दिया उसने ऐसा घाव,
जो भर नहीं सकता इस जीवन में।
11.00 pm, 12th nov 2009
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