बहुत दूर है वो, साथ समंदर पार,
पर बात होती है हमारी हर रात।
दोस्ती हमारी बचपन से है,
हम थे सहपाठी, पढ़ाई की थी हमने साथ-साथ।
श्रेय देती हूँ आविष्कारकों को,
जिन्होंने आविष्कार किया अंतरजाल को।
अब कोई किसी से दूर नहीं,
हम सब पडोसी है, चाहे धरती के किसी भी कोने में हो।
दुनिया अब बन चुकी है एक गाँव,
कोई नहीं है आज किसी से दूर,
सबसे है पहचान हमारी,
जो है कहीं सुदूर।
2.55 am, 2nd dec 2009.
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ReplyDeleteबहुत ही सुंदर कविता।
ReplyDeleteबहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
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