Wednesday, April 28, 2010

काश मैं एक पंची होती

काश मैं एक पंची होती,
मुक्त मैं गगन में उडती रहती,
एक ही जगह बसे रहने का बंधन नहीं होता,
पूरे धरती पर विचरण करती.

किसी भी देश में घूमने जाती,
जब तक मन करता वहीँ रहती,
फिर किसी और देश को देखने जाती,
नहीं होती लेनी किसी की अनुमति.

जहाँ तैरती वहीँ अपना घोसला बनती,
किसी भी पेड़ पर रहने लगती,
उस शेहेर से जी भर जाते ही,
अगले महादीप के लिए उड़ने लगती.

Tuesday, April 27, 2010

लौटकर आऊंगा वापस ना जाने को.

मैं हूँ दूर बहुत तुमसे,मुझे आती हो याद हर पल,

तुम्हारी मोहक सुन्दरता कर देता है मन मेरा चंचल.

दिखी थी आखरी बार, तुम मुझे बादलों के बीच से,

और मन मेरा बेचैन था, होने पर जुदा तुमसे.

वैसे तो बिकती है यहाँ जीवन की हर ख़ुशी,

चैन मन को देता हो जो, वो हो तुम्ही.

कहाँ सोचा था मैंने? जाना होगा दूर तुमसे,

वादा करता हूँ मैं,जब आऊंगा लौटकर,गर्व होगा तुमको मुझपे.

आज मैं जो भी हूँ,तुम हो वजह उसकी,

दूर देश में नाम हो मेरा,तुम भी तो चाहती थी.

इन्होने मुझे अपनाया,किया मेरा स्वागत है,

चाहे जितना भी प्यार मिले, प्यार मुझे तुमसे ही है.

आ रहा है मित्र मेरा अगले महीने मिलने मुझसे,

भेज देना मिटटी थोडीसी वतन की उसके हाथों से.

लौटकर आऊंगा वापस ना जाने को,

काम ऐसा कर आऊंगा, जिसे पहचाने पूरी दुनिया तुमको.


यह कविता उन प्रवासी भारतीयों के लिए है जो अपनी देश के नाम को उचा करने के लिए विदेशो में बसे है, पर उनको भारत की याद हमेशा आती है. हवाई जहाज़ में खिड़की से अपनी देश की मिटटी को तब तक देखते हैं जब तक बादलों के बीच ना पहुँच जाये.

मेरी पहचान उससे बचपन से है.

देखा है इस चेहरे को कई बार,चाहा है मैंने इसे बेशुमार,
प्यारी लगती है मुझे इसकी आखें और उनमें बसे सपने,
सपने ऐसी ज़िंदगी के जहाँ हर पल कामयाबी चूमे कदम उसके.
इस चेहरे पर दिखती है सदा हसी,जो औरो को देती है सदा ख़ुशी,
पर नहीं जानते लोग ये की, इस हसी के पीछे है कई गम भी.

जानती हूँ मैं इसे बचपन से,प्यार भरा है बहुत सारा इसके दिल में,
इतना जितना, पानी भी नहीं सागर में.
दिल में छुपा के सारा गम, प्यार करेगी अपनों से.
नहीं देखा किसीने इसको रोते,है वह चुलबुली बहुत, सुना है लोगों को कहते,
पर मुझे पता है, गुजारती है ये अपनी रातें रोते रोते.

ईश्वर पर है भरोसा उसे, डरती नहीं है कभी मेहनत से.
भरोसा है उसे अपनी पूजा पर, मिलती है मन को शांति उसे इसीमें.

Sunday, April 25, 2010

मेरा खुद से वादा

वादा है मेरा मुझसे,नहीं रुलाउंगी खुद को कभी,

चाहे कैसी भी हो परेशानी, चेहरे पे रहेगी हमेशा हसी.

मांगू मैं शमा मुझसे,रुलाया है मैंने इसे कई बार,

नादानीया मेरी अब तक की, जिनके लिए मैं हूँ शर्मसार.

विनती करती हूँ खुद से, ना होना उदास कभी,

सपने जितने देखे हैं पूरी करुँगी मैं वो सभी.

आदेश है मेरा मुझसे,थक के ना रुकना कभी,

सहारा मेरा रहेगा हर पल, चलते चलते रुक जो गए कहीं.

आगाह करती हूँ खुद को, ना करना सभी से दोस्ती,

सच्ची दोस्त मैं बनूँगी तुम्हारी, जब तक तुम मुझमे बसी.

2.15 am 3 sept 2009

काले में है सुन्दरता बसी

काले में है सुन्दरता बसी, तभी तो रात कलि है,
दिन भर के थकान के बाद करते हम रात का इंतज़ार हैं.
काली होती है मधुर बहुत तभी तो कोएल काली है,
साल भर के इंतज़ार के बाद करते हम वसंत का इंतज़ार है.
काली होती घनेरी बहुत तभी तो केसू घनेरे हैं,
अशांत दिमाग को मिलता चैन इसके तले है.
काली होती शक्ति का प्रतीक है, तभी तो माँ काली है,
बड़ी डरावनी है काया उनकी,फिर भी पूजी वह जाती है.
काली बनाती है सुंदर बहुत तभी तो काजल काली है.
जैसे ही लगती है आखों पर, देती उन्हें सुन्दरता है.
काली होती है मोहक बहुत, तभी तो बिंदी काली है,
लगते ही किसी युवती के माथे, खिलता उसका चेहरा है.
4th april 20091.30 am.

मुझे इतनी मोहलत दे ऐ खुदा

मुझे इतनी मोहलत दे ऐ खुदा,

की सारे सपने पूरे कर सकूँ.

खुद को जब देखूं आईने में ,

तो एक मुक्कमल इंसान नज़र आऊं.

Saturday, April 24, 2010

विशवास चमत्कार का, मुझे आप पर है.

कहाँ थी मेरे विशवास में कमी,
की आपने मुझे यह दिन दिखाई?
मैंने हर बाधा को परीक्षा माना,
बिना किसी शिकायत किए उसे अपनाया.
मेरी हर जीत का श्रय जाता है आपको,
फिर हार पर क्यूँ दूं दोष किसी और को?
मेरी सुबह शाम सब आप हो,
फिर क्यूँ दोष दूं हार पर किस्मत को?
गृह तारे अगर किस्मत बनाते हैं,
तो क्यूँ पूजता है संसार ईश्वर को?
पत्थरों का पहनना अगर पलट दे हार जीत में,
तो कोई क्यूँ करे विशवास ईश्वर की भक्ति में?
नहीं जानती कौन सा गृह मुझे हार दिखता है?
पर विशवास चमत्कार का, मुझे आप पर है.

Thursday, April 22, 2010

प्यारी स्वाति

मैंने तुम्हे देखा उन लम्हों में,
जब तुम्हे मैं जानती थी बाकि लोगों में.
तुमसे मेरा हर दिन बातें करना,
तुम्हारे हर मज़बूत इरादों को तुम्हारी बातों में सुन ना,
दुनिया की हर बुराई से अकेले लड़ना ,
हर गम को भुलाकर, सबके साथ हसी मज़ाक करना.
तुम्हारी ऐसी कई गुण , ऐसी कई बातें तुम्हारी,
बन्ने को दोस्त तुम्हारी, मुझे मजबूर करती.
दोस्ती ने मुझे तुम्हारी, बनाया है आज एक काबिल लड़की,
किसी भी कठिनाई से अब मैं नहीं डरती.

तुमने अपना वो मुकाम बनाया,
पहुचना चाहता है हर कोई जहाँ.
तुमसे मुझे मिलती है प्रेरणा,
जीतने की अकेले कोई भी समस्या.
एहसास दिलाया है तुमने मुझे,"हो तुम अकेले इस दुनिया में",
"और रहना तैयार खुद को किसी भी मुश्किल से सामना करने".

काश दिन के घंटे ज्यादा होते!

करना है काम बहुत सारा,
कहाँ से शुरू करूँ? नहीं चल रहा है पता.
बिस्तर पर सोये सोये याद आता है काम मुझे,
तरीके सोचती रहती हूँ, हर पल पूरे करने के उसे.
घंटे हैं दिन के चौबीस,
करने होते है काम इसी बीच छब्बीस,
देना होता है सबको वक़्त भी,
ध्यान रखना होता है काम को भी इसी बीच.
लगता है अब तो सहारा ईश्वर का ही है,
जो, कोई चमत्कार कर सकते हैं.
या तो मेरी नींद कम कर दे,
नहीं तो प्रार्थना है की दिन के घंटे बढ़ा दे.
2.15 am
13th april 2010.

Tuesday, April 20, 2010

कहने को बातें है बहुत

कहने को बातें है बहुत पर सुनता नहीं है कोई,
कितने गीत है गुनगुनाने ,को पर बोल देता नहीं है कोई.
आखें मेरी तरसती है किसी के नज़र को, पर दीखता नहीं है कोई,
मनं करता है प्यार करूँ किसी को, पर प्यारा नहीं है कोई.
चाह है बारिश के बूंदों की पर बदल नहीं है कोई,
पास है मेरे गुच्छा फूलों का, पर गुलदस्ता नहीं है कोई.
पानी से भरा झरना हूँ मैं, बहने के लिए पहाड़ नहीं है कोई,
कहते हैं दोस्त मेरे नगीना हूँ मैं, पर अंगुठी नहीं है कोई.
सुंदर मूरत हूँ मैं पर रंगता नहीं है कोई,
कहने को बातें है बहुत पर सुनता नहीं है कोई.
२८ जनुअरी २००९.
३.४० अ.म

मुझे सारे रंग आचे लगते हैं.

पसंद है मुझे रंग गुलाबी,
मुझपे ये लगती है सुहानी,
खिल उठता है मनं मेरा,
जो दिख जाये ये रंग कहीं भी.

वैसे तो रंग सारे मुझे पसंद है,
पर उनमें पिला सबसे उज्जवल है,
पहनो तो रूप रंग खिलता है,
हल्दी तो कीटाणु नाशक होता है.

काले में भी नहीं है कोई खराबी,
मोहक होती है कलि बिंदी,
गोरे चेहरे पे एक कला तिल,
सुन्दरता की होती है निशानी.
9.45 am 09 jan 2010.

Tuesday, April 13, 2010

मेरा बीता हुआ कल.

पहले कभी कवितायेँ लिखती नहीं थी,बस शायेरों की मैं तारीफ करती थी.

कहीं भी पर लेती कोई अच्छी कविता,मैं उस कवी के कविताओं की दीवानी बन जाती थी.
ऐसे ही सुनाई उसने, मुझे अपनी लिखी कविता एकबार,

उसे क्या पता थी, मैं उसे परती थी बार बार.

विश्वविद्यालय की कक्षा में, मैं पर्ती उसकी हर कविता सौबार,

मन मेरा भर गया जब लिखी उसने एक कविता मुझपर.


पागलपन से दीवानी, और फिर कब हो गया प्यार उससे?

तय कर लिया, भुला दूंगी हर ख़ुशी को उसके लिए.
जब से उसे मेरे प्यार की खबर हुई,उसने अपनी हर कविता मेरे लिए लिखी.

दुनिया के लिए वो एक अनजान कवी था,पर मेरे लिए दुनिया का वो सबसे नमी शयेर था.

बात ये मैंने उसे कई बार बताई,की मुझे उसमें सिर्फ पसंद है उसकी लिखी शाएरी.
कई सालों बाद नहीं है कोई शयेर, नहीं कोई शाएरी,

दोस्रून की कविता में नहीं होती है कोई दिलचस्पी,बस यादें ही बन चुकी है अकेलेपन की साथी.