Sunday, June 27, 2010

सपने मैं अब भी देखती हूँ,

नहीं है वो कहीं, पर हर तरफ वो ही तो है,
ज़िंदगी ने मुझे उससे दूर कर दी है।
जो लोग कहते हैं भूल जाओ उसे,
पता है मुझे, नहीं देखा जाता मेरा दुखी चेहरा उनसे।

अकेलेपन में मैं रोटी ज़रूर हूँ,
पर मैं कोई नादान कमज़ोर इंसान नहीं हूँ।
मुझे मेरे भविष्य की फ़िक्र है,
तभी तो मेरे सपने अब भी जिंदा है।

सपने मैं अब भी देखती हूँ,
बस आशीर्वाद ईश्वर का हर पल चाहती हूँ।
2.10 a.m
25th april 2010.

जब तक मेरा दिल धडके मेरे दिल में ही रहो ।

सुबह -सुबह उनके दर्शन मैं करती हूँ,
नहीं चाहती मैं किसी और को देखूं।
आसन से चलकर मेरे मन में आ बसों,
जब तक मेरा दिल धडके मेरे दिल में ही रहो
मेरे अशांत मन को अपनी महिमा से शांत करो,
आंसू भरी मेरी दोनों आखों को,
खुद अपनी हाथों से पोछो.
दुनिया में बहुत भक्त होंगे आपके,
मैं भी तो एक भक्त हूँ उन सब में।
1.55 a.m
20th april 2010.

मुझे ना छुना चांदनी,

मुझे ना छुना चांदनी, मुझ पर हक़ है मेरे महबूब की।
भिगोना नहीं अपने जल से ऐ काले बदल,
दिख गए गर वो, शर्म से हो जाउंगी मैं जल जल।
ठंडी हवा ना उड़ना मेरे केसुओ को,
वर्ना मिल जायेगा उन्हें मौका छूने का इनको।
नहीं चाहती मैं, चिड़ियाँ तुम चेह्चाहाओ इतना,
की मिल जाये पास आके, उनके बात करने का बहाना।
बिजली तुम तेज़ ना कड़कना,
बदल ज़रा धीरे गरजना,
डर लगता है मुझे तुमसे,
पड़ ना जाये तुम्हारे गर्जन से, मुझे उनके बाँहों में जाना।
मैं तो चाहती हूँ वो खुद आये मेरे पास,
अपनी मोहक बातों से, दिलाये मुझे प्यार का एहसास।
३.३० ऍम
16th april 2010.

नहीं लगती अकेलेपन से डर,

बुरी नहीं होती तनहा ज़िंदगी,

अगर वो लाये अपनों के चेहरे पर हसी।

नहीं लगती अकेलेपन से डर,

जब याद आ जाये, बिताया हुआ अपनों के साथ का पल।

मैंने सुना है लोगों को तन्हाई को कोसते हुए।

क्या पता उन्हें? तन्हाई कितने काम आये?

मैंने तन्हाई को अकेलेपन का सहारा बनाया,

इसी तन्हाई में ख़ुशी का गीत गुनगुनाया,

आगे की सुनहरी ज़िंदगी के लिए सपना सजाया,

और इसी तन्हाई ने मुझे मौका दिया,

मेरे अंदर छुपी हर हुनर को पहचानने का।

2.37 am

13 april 2010.

आना होगा एक दिन मुझे तुम्हारे पास।

मेरे गाँव से होकर गंगा बहती है,
अपना शीतल जल हम्हारे लिए,
पहाड़ो से बहाकर ले आती है।
मेरा बचपन इसी के किनारे बीता,
मैंने कई दोपहर यहाँ खेलकर गुज़ारा।

एक बार नाव पर बैठकर, की थी मैंने गंगा मैया पर सवारी,
याद है मुझे उस दिन नाव पर बैठे-बैठे, दादाजी को गीत सुना रही थी।
माझी ने भी मेरे साथ सुर मिलाया था,
हम्हारे गीत से खुश थी गंगा मैया।

आज मैं उनसे बहुत दूर हूँ,
अपने पांच मंजिला घर में उन्हें याद कर रही हूँ।
माँ कभी नहीं भूलती अपने बच्चों को,
तभी तो सागर से कहा है मेरी रखवाली करने को।

मैं हमेशा सोचती थी, क्यूँ प्यार है मुझे सागर की लहरों से?
क्यूँ पसंद है शहरों में येही शेहेर मुझे?
ज़िंदगी के कई साल बीत गए ,
इसी सवाल के जवाब के लिए।

संतान चाहे जहाँ भी रहे,
माँ का दिल हमेशा उसके पास दौड़ता है।
वो चाहे खुद ना जा सके,
पर उनका ध्यान हर पल संतान पर रहता है।

मेरे लिए वो अपने दुसरे संतानों का कैसे त्याग करे?
तभी तो सागर से मिलके , कहा है मेरा ख्याल रखे।
गंगा मैया यहाँ नहीं है तो क्या हुआ?
मिलती रहती है मेरी खबर उसे,
सागर के ज़रिये।

मैं चाहे कुछ भी बन जाऊ
आना होगा एक दिन मुझे तुम्हारे पास।
मत बहाना अपने आंसू उस दिन,

क्यूँ की नहीं रहेगी इस शारीर में उस दिन प्राण।
४.०५ प.म
७थ फेब २०१०.


नहीं भागुंगी सपनो के पीछे,

मेरा मन हमेशा से गायिका बन्ने का था,
पर फ़र्ज़ ने हमेशा मेरे बड़ते क़दमों को रोका।
मेरे लिए मेरे सपनो से बढकर थी मेरे माता पिता की इच्छा,
की मैं पडू बहुत ज्यादा।

मैंने उच्च शिक्षा हासिल की,
मेरे माता पिता की इच्छा पूरी हुई।
इसी बीच मेरे गायिका बन्ने की इच्छा और प्रबल हो गयी।
मैंने कोशिश तो ज़रूर की, शयेद मुझमें ही कहीं कमी रह गयी।

जब-जब मैं किसी प्रतियोगिता में गयी,
मेरे जीत के सामने हमेशा हार आ गयी,
मेरे आत्मविश्वास को हमेश गिरती गयी।

अब मैंने ठान लिया है,
नहीं भागुंगी सपनो के पीछे,
चाहे वो मुझे कितने ही सुहावने लगे।
मैं जीऊँगी सच्चाई में,
उन अवसरों पर जो ईश्वर ने मुझे प्रदान किए।
उन्ही को बनाउंगी अपना ढाल,
उन्ही के बदौलत बनूंगी अपना नाम।

गाऊँगी अब मैं सिर्फ मेरे लिए,
मुझे नहीं बनना गायिका,
नहीं गाना कोई गीत,
किसी शोहोरत के लिए।
१.५० ऍम
१९ जन 2010

Saturday, June 26, 2010

सोचा था नहीं करुँगी याद

ना चाहते हुए भी आती है पुराणी बातें याद,
यादें जो छोड़ चुकी है, एक गहरी दाग.
सोचा था नहीं करुँगी याद ऐसी कोई भी बात,
जो बिताई थी तुम्हारे साथ.

देती हूँ सलाह दूसरों को,
की आसान है भुलाना बीते बातो को,
पर क्या पता यह उनको?
की हम भी कभी कभी करते हैं याद उन लम्हों को.

था पूरा यकीं मुझे खुद पर,
भुलाने के लिए चाहिए थे कुछ पल.
पर कुछ घाव इतने गहरे होतें हैं की,
छोड़ जाते हैं दाग ज़िंदगी भर.
9.30 pm
23rd nov 2009

छोड़ कर सब रिश्ते नाते, चल दूंगी मैं साथ तुम्हारे.

करना तुम इंतज़ार मेरा,आउंगी मैं निकलते ही चाँद के.
छोड़ कर सब रिश्ते नाते, चल दूंगी मैं साथ तुम्हारे.
करूंगी नहीं कभी किसी बात की शिकायेत तुमसे,
ना ही कहूंगी की, "याद आते हैं मुझे मेरे अपने".
पल भर आंसू ही सही, पर ज़िंदगी का मेरा सपना है तुमसे.

निकल आया है चाँद आसमान पर,
रास्ते चांदनी से जगमग हैं.
मेरा सपना तुम्हारे साथ ज़िंदगी का,
अब कुछ ही पल में मुकम्मिल है.

छोड़ चली मैं अपनों को पीछे,चल रही हूँ चांदनी की राह में.
साथ मेरे चल रही है, सपने सुहावनी ज़िंदगी के.
इस आस में की, मिल जाओगे तुम, कहीं इंतज़ार मेरा करते हुए,
बस चलती जा रही हूँ, जहाँ तक चांदनी मुझे ले जाए.
जिस पल दीखोगे तुम मुझे, लग जाउंगी मैं गले तुम्हारे.
न्योछावर होगी यह ज़िंदगी तुम पर, मेरा जीवन होगा तुम्हारे लिए.
फ़ैल चुकी है चांदनी पूरे आसमान में,धरा पर जुगनुओ से भी रौशनी है.
मैं अकेली चली जा रही हूँ,साथ में चल रहा मेरा सपना है.

क्यूँ हो रही है थकान मुझे?
रुक क्यूँ गयी हूँ मैं?
क्यूँ नहीं दीखता मुझे कोई?
मेरा सपना भी मेरे साथ नहीं है.

मैं तो चल पड़ी थी मिलने को तुमसे, पर तुम नहीं आये वादा करके मुझसे.
आंसुओ को बहने से ना रोक पा रही हूँ, पीछे मुड़ कर जा नहीं पाती.
करके मैं एभारोसा तुमपर, रुलाया अपने साथ अपनों को भी.
चांदनी हट रही है आसमान से, मैं हूँ अब भी वाही खडी,
कहाँ गया सपना साथ छोड़ कर मेरा?
इंतज़ार करुँगी, फिर से चांदनी रात की.
6.45 am.
22 april 2009

Friday, June 25, 2010

सरद ऋतू का त्यौहार.

कानो में गूंजती है मेरे आवाज़ ढोल काशे की,
करती हूँ मैं इंतज़ार साल भर से, उस एक हफ्ते की.
सरद ऋतू का सुहावना मौसम,ग्रीष्म से दूर, नाही कड़ाके की सर्दी,
इसी वक़्त आती है धरती पर घूमने,मिलने अपने संतानों से, महिषासुर मर्दिनी.

त्यौहार ये याद दिलाता है, बुराइयों पे अच्छे का,
और नारी के असीम शक्ति का.
मेरे लिए यह दिन है अच्छे नए कपड़ो का,
दोस्तों से मिलके मस्ती का,और एक हफ्ते की लम्बी छुट्टी का.

इस साल माँ तुम आना, पिटारी भर वरदान लेके,
नहीं सोये कोई गरीब मेरे देश में, रात को भूखे.
करना अपने अस्त्रों का प्रहार उस असुरों पर,
जिन्हें इर्ष्य है हम्हारे देश की सुख शांति पर.
फिर देना अपने आशीष भरे हाथ मेरे देश की मिटटी पे,
ताकि साल भर रहे हम्हारे खेत हरियाली से लहलहाते.
जाते जाते बरसा जाना अपनी करुना,
जिससे ग्रीष्म में बहे हमारी नदियों में तीव्र जल धरा.
4.20 am
9th sept 2010

Thursday, June 24, 2010

बीत चुकी वो रातें जब जगे रहना हमारी आदत थी

बीत चुकी वो रातें जब जगे रहना हमारी आदत थी,

हाथों में किताबें लिए, रात भर पढ़ना हमारी चुनौती थी.

जगे रहना रात भर, सुबह-सुबह बस का इंतज़ार,

हर रोज़ बस स्टॉप पे एक ख़ास चेहरे का दीदार,

जिस से करने को बातें होता था मन बेकरार.

हम आठ लार्कियाँ, थे सारे शैतानो की नानी,

जलते थे बाकि सब, दोस्ती से हमारी.

दिन वो बड़े ही सुहावने थे, जब हम सब साथ पड़ते थे,

एक साथ खाते थे, घूमते थे साथ में.

होती थी हमारी जेबे खली,पर पास हमारे सपने बेशुमार थे.

व्यस्त हैं आज हम सभी अपनी ज़िंदगी में,

पैसे हैं सबके पास, पर हम साथ नहीं हैं दोस्तों के.

खो गए हैं सरे सप्नेआखों से,

हर किसी को चिंता है आगे की ज़िंदगी के.

2.50 am

9th sept 2009.

क्यूँ है दिल को समझाना मुश्किल इतना?

क्यूँ नहीं रोक पाती हूँ मैं, उसको ख्यालों में आने से?
नाही इज़हार कर पाती हूँ मैं अपने प्यार का उससे.
क्यूँ नहीं रोक पति हूँ मैं खुद को उस से मिलने से?
नाही कह पाती हूँ , "मुझे मिलना हैं तुमसे".
क्यूँ नहीं लगता उससे प्यारा और कोई?
नाही कह पाती हूँ मैं हूँ तुम में खोई.
क्यूँ है दिल को समझाना मुश्किल इतना?
नाही चाहती हूँ दिल को समझाना.
क्यूँ नहीं बन सकता वो कभी मेरा?
नाही ही बता पा रही हूँ, माना है मैंने तुम्हे अपना.
क्यूँ नहीं बनाया गया उसे मेरे लिए?
नाही चाहती हूँ, शामिल हो वो कभी मेरी ज़िंदगी में.
12.15 am
24th march

सपने मैं देखती नहीं,

सपने मैं देखती नहीं, हकीकत पर जिंदा हूँ.
सपने मैं दिखाती नहीं, क्यूंकि उनका टूटना महसूस करती हूँ.
अनजान रास्तों पर चलती नहीं, खो जाने से डरती हूँ,
अनजान राहों को चुनने से दूसरों को मैं रोकती हूँ.
खुद को दूर रखती हूँ, महफ़िल में अकेली रहती हूँ,
कोई दोस्त बना कर भुला ना दे इस बात से मैं डरती हूँ.
बगीचे से फूलों को मैं चुनती हूँ,उनके पल में मुरझाने के डर से, उन्हें सिर्फ निहारती हूँ.
दोस्तों की तृष्णा मिटाती हूँ, तृष्णा मिटते ही चले जायेंगे,इस बात पर खुद से खफा मैं रहती हूँ.
19th feb 2009

Wednesday, June 23, 2010

बहुत दिनों के बाद गीत गुनगुना रही हूँ.

आज मैं बहुत खुश हूँ, बहुत दिनों के बाद गीत गुनगुना रही हूँ.
अनजान हूँ ख़ुशी के वजह से, मोहब्बत सी हो गयी है इस जहाँ से.
थिरकते हैं पाओ मेरे गीत के धुन पर,
मनन करता है उड़ जाऊं ज़मीन से फलक तक.
कोशिश में हूँ जान ने की वजह ख़ुशी की,
शयेद आया है कोई करती थी मैं इंतज़ार जिसकी.
यह एहसास देता है दिल को सुकून बहुत,
काश वो भी कर ले मेरी इस बात को महसूस.
नहीं करता है मनन उससे दूर जाने का,
नाही उसे जाने देने का.
पता है मुझे, बना नहीं है वो मेरे लिए, ना ही मैं उसके लिए.
फिर भी रहेगा मेरा प्यार शाश्वत हमेशा के लिए.
23rd
march

Saturday, June 19, 2010

ऐसा कभी नहीं हुआ जब मैंने होली नहीं खेली.

साल का यह दिन, जब आती है होली,
ऐसा कभी नहीं हुआ जब मैंने होली नहीं खेली.
मुझे पसंद है चेहरे रंगबिरंगी,
और गाते झूमते मस्ती करती टोली.

लाल हरा नीला पीला,
हवा में रंग है चारो और फैला.
सागर किनारे होली खेलने
का,मज़ा ही है होता निराला.

होली के दिन गर मौसम हो मेघा,
और धरती रहे चारो और हरा भरा,
हलकी सी धुप बनाये धरती सुनहरी,
इन सुबके बीच होली भी होती है मस्ती वाली.
इस साल की होली पर मैं हूँ अकेली,
कोई नहीं है प्रियतम, पर कई हैं सहेली.
रंगों का यह हरा भरा त्यौहार,
क्या इस साल लाएगा जीवन में प्यार?

नम्रता (This is dedicated to my manager)

वैसे तो मैं बहुत लोगों से मिली हूँ,
जिनसे मैं बहुत बातें करती हूँ,
मेरी काबिलियत को तुमने पहचाना,
और मुझे उनसे परिचय करवाया.
नहीं पता था की मैं किसी लायक हूँ,
किसी ज़िम्मेदारी को निभा सकती हूँ,
तुमने मुझपे किया भरोसा,
अब मेरी बारी है उन्हें निभाना.
ऐसा क्यूँ नहीं हो सकता?
की हम हमेशा साथ काम करे?
मैं हर काम में जीत हासिल करूँ,
और हम तुम मिलकर हर बाज़ी जीतें?
यह तो तै है हमें होना अलग है.
पर जितने दिन साथ हैं,
वादा रहा जीत हमारी है.

मेरी छुट्टियाँ.

क्या किया मैंने शनिवार को?
पूछते हैं लोग मुझे.
पूरे हफ्ते की थकान के बाद,
दो दिन गुज़र गए सोते -सोते.

याद है जाना था सहेली के जन्मदिन पर.
पर दर्द से फटा जा रहा था मेरा सर.
सो गयी रात के ग्याराह बजे शनिवार को,
जब नींद खुली तो देखा,
बज रहे थे घडी में शाम के,
दस मिनट पांच बज कर.

बिना किसी रोक टोक के,
सोयी रही मैं पूरे आठ्रह घंटे.
ऐसी बीतती हैं छुट्टी मेरी,
कट जाता है नाता मेरा पूरी दुनिया से.

अगले जनम अगर मैं मनुष्य बनी,

अगले जनम अगर मैं मनुष्य बनी,
नहीं भेजना भगवन तुम मुझे और कहीं.
जब मैं अपनी नन्ही आखें खोलूं,
बिना जात-पात, भेद-भाव वाला भारत देखूं.

जब समझने लगूं दुनिया दारी को,
मान्यता मिले मेरी कामयाबी को.
जब लेने जाऊं दाखिला विश्वविद्यालय में,
ना देना पड़े अतिरिक्त दक्षिणा, अनारक्षित होने के वजह से.

ऐसे भारत को अगले जनम में पाऊं,
जहाँ हर किसान की पूजा हो.
ना करे वो ख़ुदकुशी क़र्ज़ के दर से,
उनकी कमाई हो ज्यादा हर किसी से.

अगले जनम जब किसी से प्यार करूँ,
मुझे ज़माने का दर ना हो.
उस समाज में ऐसे माता-पिता हो,
जिन्हें जात-बिरादरी से ज्यादा, बच्चो की ख़ुशी की चाह हो.