Wednesday, November 30, 2011

शायद मुझे ज़रूरत है एक बदलाव की.

छोड दी सारी उम्मीद  मैने,
न रही कोइ आशा इस जीवन से.
मैं तो जी रही हूँ आपनो कि खुशी के लिए,
अब अगर मैन मर भी जाऊ,
न होगी कोइ शिकायत  इश्वर से.


फिर कभी खुद को धिक्कर्त्ति हूँ,
मैं कयारों कि तरह क्युं सोच रही हूँ?
मुझमें है असीम ताकत,
जो पुरी कर सकती है मेरी हर चाहत.


मैं तो कभी न थी हारर्ने वलों में,
मेरी हर हार ने बदाया  है   मुझे जीत कि राह में.
क्युं बदल रही है अचानक सोच मेरी?
शायद  मुझे ज़रूरत है एक बदलाव की.

9.15 pm
27th nov 2011.


Sunday, November 6, 2011

रोती हूँ मैं इसके सामने तभी तो.

समंदर के किनारे बैठी हूँ,
कुछ भी नही बस लेहेरों को ताक रही हूँ.
जिस तरह वो निरन्तर  चंचल है,
मेरा मन भी बहुत  अशान्त है.

हर सुभा मैं यहाँ आती हूँ.
 पता नही क्युं?
जिस घर से दूर रहना    बिल्कुल पसंद नही मुझे,
भूल जाती हूँ उसे, मैं यहाँ आके.

मेरे गुज़रे कल पे,
नाज है मुझे,
मुझमें छिपी कब्लियत को,
निहारती हूँ मैं यहाँ बैठे- बैठे.

एक यह सागर ही है जो,
भुला देती है मेरे गमो को.
तभी तो यह मुझे अपना लगता है,
रोती हूँ मैं इसके सामने तभी तो.

6.30am
17th july 11

सबके प्यार ने मुझे सिर्फ ज़िद्दी बनाया.

हमारे वंश कि मैं पहली बच्ची,
सबकी मैं थि बडी प्यारी.
दादाजी मुझे इतना प्यार करते,
कोइ कुछ भी घर पर तोड़ता, 
दादाजी के डर  से मेरा नाम लेते.

छः साल तक, मैने सबको सताया,
मेरी ज़िद को पूरा करने के लिए,
हर कोइ तैयार रहता.
बुआ मेरी मुझसे दिन भर खेलती.
चाचाओ के साथ् सैकिल पर घुम्ती.

बचपन मेरा गांव में बीता.
सबके प्यार ने मुझे सिर्फ ज़िद्दी बनाया.
मैं उस प्यार कि मैं  इज्ज़त करती हूँ,
जो मैने सबसे पाया.
सच्चाई तो यही  है,
इतना सारा प्यार बचपन में,
बच्चों को सिर्फ बिगड़ता है.

5.05 am
2nd nov 2011

नाम मेरा कैसे पडा?

नाम मेरा कैसे पडा?
मुझे कुच दिनो पहले हि पता चला.
क्यून कि मैं पहली बच्ची थि खानदान कि,
सभी ने मेरे लिए अलग अलग नाम चुना था.

दादाजी ने एक नाम रामायण से चुना,
ददी को भी यह  नाम पसंद आया.
नाम था वो "शबरी"
जो राम जी को झुठे बेर खिलाती थी.

मामाजी को नाम पसंद था "तुआ",
क्युनकी इस्में मा पप दोनो के नाम क अक्षर था.
पर दादाजी कहाँ मान ने वाले थे?
तो कोइ भी नाम मेरा नही हा.

मा के मन में कुछ नाम थे,
उनको दिए के नीचे लिख्कर रख दिया गया.
जिस नाम क दिया जलता रहा,
वही नाम मेरा हुआ.

6.40 am
22nd oct 2011.

Monday, October 3, 2011

वो पल बहुत हसीन था.

धुनो कि बहर थी,
बौचार थी चारो ओर तालियों  की.
एक बडा सा मंच था,
दर्शकों से माहोल  था भरा.
समा था अन्ताक्षरी का,
हम तीन, नही थे कम, किसी से वहाँ .
शाम जैसे- जैसे आगे बडी..........
जीत हमारी ओर आती गई.
वो पल बहुत हसीन था.
जब विजेता हमें घोषित  किया गया.

6:32 am
29th sep 2011.

अब तो मान लिया हैं मैने साथी इनको,

साल का   फिर से वही समा,
माहौल है मा दुर्गा के पूजा का.
सभी ने नाए कप्ड़े हैं खरीदें,
उमेंगें है सभी के मन  में.

नही पता क्या करुंगी छुत्तियों  में ?
याद आया, घर पर पडी हैं  कुछ अन्पदी  किताबें.
किताबों को बनाया हैं साथी मैने,
यह  आदत पडी  न जाने मुझे कब् से?

जो भी हो!
अब तो मान लिया हैं मैने साथी इनको,
सुकूं मिलता है, आखों के सामने देख्के इनको.

7:25 am
30th sep 2011

Saturday, September 10, 2011

मैन तो चाहती थी, पल वो जाए थम

उस दिन मैन बहुत खुश थी,
बचपन के दोस्तों से जो मिली थी.
श्याम को हम मिले,
और साथ् में खूब हल्ला गुल्ला भी किए.

रात बहुत हो चुकी थी
हम सबको भूख लगी थी जोर कि.
दुकानें नही थी कोइ भी खुली.
तो चल दिए हम रेल्वे स्टेशन को
खाने  गरमा- गरम इडली.

वापस लौटते वक्त, थके थे हम सब,
सन्नाटा सा था गाडी के अन्दर.
खुश तो थे ही हम
दूस्रों का  पता नही,
मैन तो चाहती थी, पल वो जाए थम.

4.44 am
10th sep 2011

Saturday, August 20, 2011

यह तो थे गीत के बोल,

आज एक गीत सुन रही थी,
गायक जता रह था ज़रूरत एक साथि कि.
गीत के बोलों में बखान था,
उदास होती है ज़िन्देगी,
बिना किसी साथी के कोइ.

गायक को इन्तजार  है एक साथी के,
जो कर रही है गायक का इन्तजार कई युगों से.
जिसकी ज़िन्देगी शुरु हो गायक से,
और वो जीये सिर्फ गायक के लिए.

यह तो थे गीत के बोल,
पर कहाँ मिल पाती है ज़िन्देगी में,
इन सब बतों को मोल? 

3:33 am,
18th aug 2011



लाल गुलाब प्यार जताता है,

आज जो मैने सपना देखा,
उसमें मैने किसी के लिए,
लाल गुलाब का गुल्दस्ता बनाया.
याद नही आ रहा, किसके लिए था?
साथ् में उस गुल्दस्ते के, था एक तोह्फा .

यह मौका मुझे कभी नही मिला,
दूँ मैन लाल गुलाब किसीको,
है हि नही मेरी ज़िन्देगी में,
मेरे परिवार के बाद, इतना  कोइ प्यारा.

सुना है लाल गुलाब प्यार जताता है,
फिर तो मुझे मेरी सहेली से बहुत प्यार है.
क्युं न कुछ लाल गुलाब मैं भेज दूँ उसे?
पर वो रेहती है बहुत दूर मुझसे.

3:01 am
20th aug 2011

काश, थोडा और पढ पाती

विज्ञान, मेरा प्यारा विषय,
नही दे पाई मै  इसको ज्यादा समय.
कई सालों कि मेहनेत करनी होती है,
कई सालों तक पढ़ते रहन पड़ता है.
जार सा  धयान इधर उधर भटका,
तो पाठ समझ में, बडी मुश्किल से आता.

बचपन में डरती थी, भौतिक और रसायन विज्ञान से,
सिर्फ जीव विज्ञान समझ में आता था मुझे.
जब बारह्वी कक्षा में आई ,
जीव विज्ञान के साथ-साथ् रसायन  विज्ञान भी भाने  लगी.

आगे की पांच सालों की पढाई में,
सारे विज्ञान के हि विषय थे मेरे.
मेरी सबसे उची सिक्षा,
खतम हुइ पर्यावरण के विषय में.
आज भी ऐसा लगता है,
काश, थोडा  और पढ पाती विज्ञान के बारे में.

4.39 am,
20th aug 2011

Sunday, August 14, 2011

अब बस कुछ ही दूर है पश्चिम बंगाल.

इस राह से गुज़रते हुए,
न जाने कितने हि गांव देखे.
शहरों  कि संख्या कुछ कम हि थी.
पर जो भी दिखी, कुछ तो महानगर थी

पार कर चुकी दो प्रान्त,
अब बस कुछ ही दूर है पश्चिम बंगाल.
मेरा जनम हुआ था यहाँ,
इस राज्य में.
जब भी जिक्र होता है इस राज्य का,
भर आतें हैं आंसू मेरी आखों में.

इस बार आई हूँ यहाँ दो साल बाद,
मिलुंगी अपने प्रियाजनो से, कितने ही महीनो बाद.
कितनी सारी उमंगें हैं दिल में मेरे,
काटे नही कट ता, समय इस सफर में.
10.50 am,
12th feb 2010.

Sunday, August 7, 2011

नाम है उसका स्वाति .

बहुत अच्छी दोस्त है मेरी,
नाम है उसका स्वाति .
हम कुछ सालो पहले मिले थे.
बन गए दोस्त जीवन भर के लिए.

विश्व विद्यालय में मेरी सहपाठी थी,
दो- तीन दिन के बतों से ही पाता चला,
कितनी  समानता है हमारी.
पढे थे हम दोनो  ही केन्द्रीय विद्यालय से,
पर भारत देश के अलग अलग प्रान्त में.

बाते कर्ने के लिए कै थे,
पर मन् को चैन मिलता था स्वाति के हि बातो से.
उस से मुझे बहुत प्रेरणा मिली है,
अन्याय को न सहने कि सीख, सीखा है मैने उसी से ही.
अपने सप्नो को प्यार करना, सिखाया है मुझे स्वाती  ने ही.
5.00 am,
7th Aug 2011.

Thursday, June 16, 2011

मेरी वापसी..

कई महीने हो गए मैंने इस पृष्ट को छुआ तक नहीं, इसे देखा भी नहीं. पर अब मैं वापस आ गयी हूँ. अब से यहाँ फिर से कवितायेँ लिखूंगी.