Monday, October 3, 2011

वो पल बहुत हसीन था.

धुनो कि बहर थी,
बौचार थी चारो ओर तालियों  की.
एक बडा सा मंच था,
दर्शकों से माहोल  था भरा.
समा था अन्ताक्षरी का,
हम तीन, नही थे कम, किसी से वहाँ .
शाम जैसे- जैसे आगे बडी..........
जीत हमारी ओर आती गई.
वो पल बहुत हसीन था.
जब विजेता हमें घोषित  किया गया.

6:32 am
29th sep 2011.

अब तो मान लिया हैं मैने साथी इनको,

साल का   फिर से वही समा,
माहौल है मा दुर्गा के पूजा का.
सभी ने नाए कप्ड़े हैं खरीदें,
उमेंगें है सभी के मन  में.

नही पता क्या करुंगी छुत्तियों  में ?
याद आया, घर पर पडी हैं  कुछ अन्पदी  किताबें.
किताबों को बनाया हैं साथी मैने,
यह  आदत पडी  न जाने मुझे कब् से?

जो भी हो!
अब तो मान लिया हैं मैने साथी इनको,
सुकूं मिलता है, आखों के सामने देख्के इनको.

7:25 am
30th sep 2011