Wednesday, October 16, 2013

"कर्म करते रहो, फल आज नहीं तो कल मिलना ही है "

लक्ष्मी, यही कोई दस साल बड़ी होगी मुझसे, कुछ महीनो के लिए मेरी सहकर्मी रही।  मेरी एक आदत है की हर वो इंसान जिससे मैं मिलती हूँ ,  उसके बारे मैं अगर कोई बात मुझे ख़ास लगे तो, उससे मैं कुछ न कुछ सीख लेती हूँ।  
लक्ष्मी की कहानी मुझे  बहुत ही ज्यादा ख़ास लगी।  वह एक आदर्श बेटी, आदर्श बहन, और एक आदर्श प्रेमिका है।

बीस साल पहले जब लक्ष्मी सोलह साल की थी,  उसे अपने एक सहपाठी से प्यार हो गया था। चार भाई-बहनों में सबसे बड़ी होने की ज़िम्मेदारी उसके दिल की चाह से भी ज्यादा थी। उसके दिल में पल रहे प्यार को उसने कभी ज़ाहिर ही नहीं किया, न ही उस इंसान को, जिसे मन ही मन चाहती थी, न ही कभी किसी दोस्त से।  वह खूब अच्छी तरह समझती थी समय की मांग उसका प्यार नहीं, बल्कि उसकी जिम्मेदारियां  है।   

उसने पढाई ख़तम की तो तुरंत उसकी नौकरी भी लग गयी, फिर ज़िन्दगी की व्यस्तता में इतनी उलझ गयी की प्यार के लिए कोई वक़्त ही नहीं था उसके जीवन मे।  उसे विदेशो से नौकरियां मिलने लगी, अपनी हर इच्छा भारत में छोड़ कर वो चली गयी सयुंक्त राष्ट्र , वहां से निकल कर कुछ साल वह रही मलेशिया में, फिर भारत लौटने से कुछ साल पहले न्यूजीलैंड में रही। इसी बीच उसने बहुत सारा पैसा कमाया, भाइयों को पढाया, एक मात्र बहन की शादी करवाई। अपने माता -पिता के लिए रहने लायक एक सुंदर सा फ्लैट भी खरीदा। बीस साल अपनों के लिए जीना एक लड़की के लिए बहुत बड़ी बात होती है।  मैं तो लक्ष्मी को उस परिवार के लिए वास्तव में लक्ष्मी  का अवतार ही मानूंगी। 
खुद क्या चाहती है, उसके सारे  सपने, सब कुछ भुलाकर वो अपनों से और अपने देश से दूर, अपने परिवार के लिए जी रही थी। इतने सारे जिम्मेदारियों के बीच लक्ष्मी को उसका प्यार बहुत याद आता था, पर उसे पाने का कोई उपाय नहीं था लक्ष्मी के पास।  आज से पंद्रह साल पहले तो ऑरकुट और फेसबुक भी नहीं थे की हम किसि के साथ संपर्क में रहें। 

इतने सालों में लक्ष्मी की  माँ की तबियत  भी बिगड़ने  लगी, बहन की शादी  हो चुकी थी, एक भाई ने शादी कर ली थी , दूसरा भाई विदेश में रहता था, तो, फिर से माँ की देख रेख की उम्मीद लक्ष्मी पर आकर रुकी। 
जब प्यार नहीं होता है तो इंसान अपने जिम्मेदारियों से ही प्यार करने लगता है, इस बार उसने अपने विदेश की  नौकरी की क़ुरबानी दी और लौट आई भारत। 

भारत में लक्ष्मी को अपनी काबिलियत से कम दर्जे की नौकरी करनी पड़ी, पैसा भी कम ही मिल रहा था, इन सबके बावजूत उसने किस्मत के इस फैसले को भी हस्ते-हस्ते गले लगाया।  लक्ष्मी एक ऐसी लड़की है जिसने अपनी जिम्मेदारियों को अपनी ख़ुशी से भी ज्यादा महत्व दिया। 

मेरा तो ये ही मानना है की इश्वर  कभी किसी पर निष्ठुरता नहीं दिखाता , ख़ास कर जब कोई इंसान बिना किसी उम्मीद के अपना कर्म हस्ते हस्ते करता है। हर इंसान को अपने अच्छे कर्म और त्याग का फल तो मिलता ही है। 
लक्ष्मी कोभी उसके हिस्से की ख़ुशी मिली। उसके बीस साल बाद भारत लौटते ही एक करीबी रिश्तेदार के यहाँ शादी पे गयी, और वहां जो उसे इश्वर ने ख़ुशी दी, उसे पाने के बाद लक्ष्मी को  इस जीवन  से कोई और  इच्छा नहीं रही। उसकी मुलाकात उसके बचपन के प्यार से हो गयी।  
जिसकी यादें भूली बिसरी बातें थी, जिसे पाना  नामुमकिन था, जो सोलह साल का नवयुवक अब एक उनचालीस साल का आदमी बन चूका था, वह तो जैसे ईश्वर के वरदान  के रूप में लक्ष्मी के सामने खड़ा था। 
ऐसे मौको पर प्रेमियों को आस-पास के लोगों से कोई वास्ता नहीं होता, समाज के नियमो की परवाह नहीं होती, तो यह दोनों कहाँ एक दुसरे को सिर्फ देखते रहते? लक्ष्मी के प्यार ने उसे गले लगा लिया। प्रकृति ने आंसू सिर्फ नारियों को ही नहीं दी, ख़ुशी के आंसू तो दोनों की ही आखों में थी। 

"बचपन से मुझे अपने दिल में रखा और एक बार भी मुझे बताया तक नहीं?" -----उसने पुछा। 
"पर यह बात तुमको कैसे पता चला?"-------लक्ष्मी ने पुछा। 
"तुम्हारे जाने  के बाद तुम्हारे ख़ास दोस्तों से पता चला"----उसने जवाब दिया। 
थोड़ी  बहुत शिकायतें , प्यार का इज़हार , ऐसे मौको पर ज़ाहिर सी बात है। 

एक महीने बाद लक्ष्मी अपने प्यार से शादी कर लेती है। वह दोनों किसी पंडित की  सलाह नही चाहते थे, उन दोनों ने लक्ष्मी के जन्मदिन को शादी करने का फैसला किया। यह लक्ष्मी के जीवन का यादगार जन्मदिन था, जब ईश्वर ने उसे उसके प्यार को तोहफे के रूप में हमेशा के लिए दिया। 

लक्ष्मी की प्रेम कहानी, आज कल की पीढ़ी के लिए एक मिसाल है।" कर्म करो फल की आशा न रखो," यही तो सुनते आये हैं हम बचपन से , पर लक्ष्मी के जीवन से मैं यही सीख लूंगी, 
"कर्म करते रहो, फल आज नहीं तो कल मिलना ही है"