Sunday, November 21, 2010

धनवाद

धनवाद उस तोहफे का, जो दिया मुझे आपने,
अब जब मिला है यह तोहफा,सम्भालुंगी उसे पूरी श्रद्धा से.
हमसफ़र जो आपने दिया है,
जैसा मैंने चाहा था वो बिलकुल वैसा है.
मेरी तनहा ज़िंदगी अब तक की,
आपने खुशियों से भर दी.
लोगों के तानो को अनसुना किया,
तन्हाई में भी, सहेलियों के खुसी का जश्न मनाया.
विशवास था मुझे मेरी दूआओं पर,
जिसे आज आपने पूरा किया.
हमसफ़र मेरा सुबसे जुदा है,
मेरे जीवन का सबसे प्यार तोहफा है.
इतनी खुश हूँ मैं, आपके इस वरदान से,
पागल ना हो जाऊ कहीं, मैं ख़ुशी के मारे.
10.10 pm
20th nov 2010.

Saturday, November 20, 2010

मेरी प्रार्थना में तुम्हारा साथ मांगूं.

मेरा जीवन अर्पित तुम्हे,
मेरी सुन्दरता तुम्हारे लिए.
हर वो तारीफ जो मुझे मिलती है,
अच्छी नहीं लगती, जब तक तुम  नहीं अच्छा कहते.


कभी जब मैं पूजा करूँ,
मेरी प्रार्थना में तुम्हारा साथ मांगूं.
चाहे टूटे हर रिश्ता,
तुम्हारा साथ हर जनम मैं चाहूँ.
3.22 am
20th nov 2010

Friday, November 19, 2010

शोहरत और प्यार का एक साथ आना

कहीं मुझे मेरी नज़र ना लग जाये,
मेरी जैसी ख़ुशी हर कोई पाए,
शोहरत और प्यार का एक साथ आना,
अगर सपना है तो मुझे मत जगाना.


यह दिन मेरी ज़िंदगी का,
नहीं भुलाना चाहती कभी,
यह कविता आज मैंने इसीलिए लिखी,
ताकि दिन यह इतिहास बन जाये, ज़िंदगी की मेरी.


अब तक अधूरी थी,
एक अनजाने भविष्य को जी रही थी,
अधूरी खुशियाँ थी सारी,
पर, अब मैं संपूर्ण हूँ, नहीं हूँ अधूरी.
3.15 am
19th nov 2010.

Saturday, October 23, 2010

क्या बैर है शनि देव को मुझसे?

गृह सारे मदद करना चाहते हैं मेरी,
पर उन सब के स्वामी हैं देव शनि।
हर वो काम जिनमें मैं माहिर हूँ,
सारी खूबियाँ जो बन सकती है पहचान मेरी,
नहीं होने देते कामयाब मुझे,
क्या पता? क्या बैर है शनि देव को मुझसे?
हे शनिदेव!
दया करो मेरी किस्मत पे,
जब चाहते नहीं की मैं आगे बढूँ,
क्यूँ दी थी खूबियाँ मुझमें?

ऐसा क्या करूँ की आप खुश रहो?
मुझपर अपनी करुना बरसो।
मैं ज्यादा की आशा नहीं करती,
नाही महान बनना चाहती हूँ।
बस इतनी कृपा करो मुझपे,
मेरे गीत कविताओं को पहचान मिल जाए।
12.20 am,
14 sep, 2010.

मुझे तो हर अच्छा इंसान भाता है,

जब रंग हमारे खून का एक है,
तो हम भिन्न जाती के क्यूँ हैं?
नाक नक्श हमारे एक जैसे,
तो हम अलग जाती के हुए कैसे?

मुझे तो हर अच्छा इंसान भाता है,
उनकी अच्छी आदतें मेरे दिन को छोटा है,
इनमें से कुछ ऐसे भी हैं,
जिनसे ज़िंदगी भर का मेरा नाता है।
किसी को भाई बनाया तो बहेन किसीको,
बहुत कम मिलतें है अच्छे लोक सबको।

अगर जाती भेद अहम् है,
तो पश्चमी देश इसे क्यूँ नहीं मानतें?
हमारा देश इसे इतना मानता है,
इस खोकली प्रथा के लिए,
माता-पिता अपने संतान की जान भी ले सकतें हैं।
2.30 am, 31 aug 2010

Saturday, September 4, 2010

जंगल के बीचो बीच एक झील है।

विसखापत्नाम में एक जंगल है,

उस जंगल के बीचो बीच एक झील है।

पूरी भरी रहती है पानी से, यह बरसातों में।

वन्य प्राणी इस झील के पानी से है प्यास बुझाते।

बहुतो को पता है, इस जगह के बारे में,

दुनिया को काम होता है सारा अट्टालिकाओं से।

दो दिन जब हफ्ते में मिलती है छुट्टी,

बिताते है दिन, आधुनिक बाजारों में,

रातों को नाच-गा के करतें है मस्ती।

मैंने सुना है लोगों को यह कहते,

नहीं है इस शहर में कोई अच्छी जगह घूमने के लिए,

नहीं देखा उन्होंने जंगले पर्वत और झील,

जो फैली हुई है यहाँ, कई-कई मील।

2.28am, 28th aug 2010.

कुछ तो ज़रूर है मुझमें ख़ास,

अगर मैं घमंडी होती,

तो मेरे किस बात पर घमंड करती?

कुछ तो ज़रूर है मुझमें ख़ास,

जिस पर हो मुझे नाज़।

सबसे पहले नाज है मुझे मेरी आवाज़ पर,

सभी तारीफ करते हैं, मेरा गाना सुनकर।

कर लेती हूँ मैं थोड़ी बहुत चित्रकारी,

और सहेली की शादी में,

लगाती हूँ, उनके हाथों में मेहँदी।

मुझे सिलाई कढ़ाई में भी रूचि है,

पर उसके लिए मेरे पास वक़्त नहीं है।

एक बार तीन दिन की छुट्टी में,

सीले थे घर के परदे मैंने।

अच्छे लोगों की मैं दोस्त हूँ,

बुरे लोगों से मैं दूर रहती हूँ।

इसके अलावा मैं बहुत मस्ती करती हूँ,

खुद चाहे दुखी रहूँ, दूसरों को हसती हूँ।

3.30 am, 3rd sept 2010.

दिल की बात मानु? या दिमाग की?

मेरे अशांत मन को शांति की इच्छा है,
ऐसा क्या करूँ? की आवाज़ उठा सकूँ अन्य के खिलाफ मैं?
मन कहता है जो हो रहा, वो अच्छा है,
दिमाग कहता है,-"तुममे लड़ने की हिम्मत नहीं है"।
दिल की बात मानु? या दिमाग की?
ऐसा क्या करूँ, की दिल और दिमाग को मिले असीम शांती?

5.30 am,26th aug 2010.

Saturday, August 28, 2010

सबसे ज्यादा पसंद है मुझे गेंदे का झाड,

मैं आज कल बहुत काम कर रही हूँ,
इतना काम जिससे मैं थक जाती हूँ
नींद जो मुझे बहुत कम आती है,
आज कल वो भी आती है खूब

दफ्तर से जाओ तो घर का काम,
बहुत कम मिल रहा है मुझे आराम
शनिवार को होता है बाज़ार जाना

मैंने फूलों का बगीचा बनाया है,
चाट के ओप्पर कई तरह के फूल भी खिले हैं
सबसे ज्यादा पसंद है मुझे गेंदे का झाड,
गुलाब का खिलना इन सब के बीच लता है बगीचे में बहार.

Tuesday, August 24, 2010

वह बड़ी मेहेंती है,


मेरी सहेली का जनम दिन है आज,

यह दिन मेरे लिए है खास।

यह कोई त्यौहार नहीं है,

पर मुझे हमेशा रहता यह दिन याद।


वह बड़ी मेहेंती है,

वह जीवन को मजेदार बनाती है।

उसके साथ रहना किसे नापसंद है?

वह तो हमेशा जोशीली, फुर्तीली रहती है।


इस जन्मदिन पर मैं तुम्हे कुछ नहीं दूंगी,

अगर तुम चाहो तो,

बधाइयाँ भी मैं दूँगी नहीं।

मन ही मन येही दुआ करूंगी,

सपने पूरे हो तुम्हारे सभी।

7.30 am 24th aug 2010.

Saturday, August 21, 2010

दुनिया अब बन चुकी है एक गाँव,

बहुत दूर है वो, साथ समंदर पार,
पर बात होती है हमारी हर रात।
दोस्ती हमारी बचपन से है,
हम थे सहपाठी, पढ़ाई की थी हमने साथ-साथ।

श्रेय देती हूँ आविष्कारकों को,
जिन्होंने आविष्कार किया अंतरजाल को।
अब कोई किसी से दूर नहीं,
हम सब पडोसी है, चाहे धरती के किसी भी कोने में हो।

दुनिया अब बन चुकी है एक गाँव,
कोई नहीं है आज किसी से दूर,
सबसे है पहचान हमारी,
जो है कहीं सुदूर।
2.55 am, 2nd dec 2009.

करना है पर्यावरण संरक्षण.

छायी क्यूँ है हर तरफ गरीबी?
क्यूँ है चारो ओर भुखमरी?
है कैसी यह औधिगिक क्रांति?
जो दे ना सके लोगों को, दो वक़्त की रोटी?

कभी सूखा परना,
तो कहीं बिन मौसम बारिश होना,
कैसी यह आर्थिक विकासका सपना?
जो हम लोगों ने देखा?

कहीं है सूखा और गर्मी,
तो कहीं पे बाड का पानी,
बहा ले जाती है साल भर की मेहनत।
बचना है अगर इस बर्बादी से तो,
करना है पर्यावरण संरक्षण.
3.10 am, 26th nov 2009.

जब हम होंगे एक।

नज़रें झुक जाती है आने से तेरे,

धारक उठता है दिल ख्यालों से तेरे।

चाहती हूँ मैं पास तुम्हे पल भर के लिए,

वेरना खाबों में आ जाना तसल्ली के लिए।

पैदा की है दूरियां हम्हारे बीच ज़माने ने,

यकीन है आओगे तुम, बहारों के मुरझाने से पहले।

हैं जो रस्म , सास के सब झूठे,

बनाये गए हैं ये सब, हमारे जैसे मोहब्बत करने वालो के लिए।

हालत का तुम्हारे इल्म है मुझे,

मैं भी तो ताराप रही हूँ यहाँ पर तुम्हारे जैसे।

दिन वो दूर नहीं जब होंगे हम एक,

कायनात पूरी मुस्कुरायेगी, हमारी तरफ देख।

बगीचों में आएँगी बहारें,

गायेंगे गीत पाहाड़ो के झरने,

उस दिन जब हम होंगे एक।

12.00 am, 11 feb 2000.

मैं खाना अच्छा बनाती हूँ

मेरे में एक गुण है,
जिसकी हमेशा मुझे तारीफ मिलती है,
मैं खाना अच्छा बनाती हूँ,
जिसे घर वाले चाव से खाते हैं।

मेरे दोस्त को यकीन नहीं हुआ,
की मैं बना सकती हूँ अच्छा खाना,
जब मैंने उसे बना के खिलाया ,
तो मेरे गुणों की तारीफ करने लगा।

अच्छा पकवान बनाना,
होता है बहुत सारा वक़्त रसोई में बिताना।
मेरे जैसी नौकरी करने वाली महिला के लिए,
बहुत मुश्किल होता है समय निकलना।
1.27am, 19th aug 2010.

भारत का यह सबसे सुंदर हिस्सा है

उत्तर भारत को तब देखा था,
जब मैं पंद्रह साल की थी।
आज मैं दक्षिण भारत में रहती हूँ,
जन्मी मैं पूर्वी भारत में थी।

भारत का पश्चिम अब तक नहीं देखा,
बहुत आमीर लोग रहतें हैं वहां येही है मुझे पता।
पश्चिम भारत को सिर्फ दूरदर्शन पर है देखा,
कभी तो ज़रूर मिलेगा वहां जाने का मौका।

भारत का एक और भाग,
बसा है सुदूर में।
आसाम, अरुणाचल, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम , मेघालय, त्रिपुरा इतय्दी,
साथ बहेनें रहती है इस अंचल में।
भारत का यह सबसे सुंदर हिस्सा है,
वर्षा वनों से भरी यहाँ की वादियाँ हैं।
3.45 am, aug 19,2010.

हल्का सा दर्द हो रहा था कल,

बिलकुल नहीं मन मेरा काम में,
दर्द हो रहा है बहुत मेरे पीठ पे।
हल्का सा दर्द हो रहा था कल,
फ़ैल गया है वो आज पूरे बाएँ हिस्से में।

नहीं कर पा रही हूँ काम कोई,
मैं इस हाथ से,
कंप्यूटर पर कैसे काम करूँ?सिर्फ दाहिने हाथ के भरोसे?
उफ़! कितनी तकलीफ होती है, एक छोटे दर्द से,
पता नहीं कौन सी बीमारी लग गयी है मुझे?

बस एक दर्द ने किया है मुझे बेहाल,
शांत हो गयी है मेरी फुर्तीली चाल।
बहाना धुन्दती हूँ, कामचोरी का मैं,
इस दर्द से आज कल लड़ रही हूँ मैं।
9.50 am aug 2010.

Monday, August 16, 2010

क्या मैं खुश हूँ?

क्या मैं खुश हूँ?

क्यूँ ना यह सवाल मैं अपने दिल से पूछूँ?

एय दिल-

"जिससे मिले भरपूर ख़ुशी, ऐसा मैं क्या करूँ?"

दिल: भुला दो उसे, रुलाया है तुमको जिसने,

भूल जाओ की किया था कभी प्यार किसी से।

था नहीं तुम्हारे असीम प्यार के लायक वो,

जिसके लिए भुला दिया था तुमने खुद को,

खुद के साथ अपनों की ख़ुशी को।

मैं: कहा तो है सही, पर यह काम इतना आसान नहीं,

घाव लगे दिल पे तो भरता आसानी से नहीं।

चाह की भुलादूं सपना समझकर उसे,

पर क्या करूँ ? कई यादें जुडी है उससे।

दिल: समझाओ खुद को, प्यार था वो एक तरफ़ा,

उसने दिल से कभी तुमको नहीं चाह।

रखा था उसने तुम्हे धोखे में,

खेल रहा था वो तुम्हारे जज्बातों से।

मैं: मन की, नहीं था प्यार उसको मुझसे,

पर करती हूँ याद अब भी उससे।

दिया उसने ऐसा घाव,

जो भर नहीं सकता इस जीवन में।

11.00 pm, 12th nov 2009

निम्मो मेरे अलमारी में है दिनभर लटकती।

यह सारी गुडिया मेरी ,
थी यह सब मेरी बचपन की सहेली।
बातें करती थी मैं इनके साथ,
हैं इन सबके नाम भी।

मेरी सबसे पहली गुडिया ,
नाम है उसका डिम्पी,
दूसरी गुडिया जो मैंने खरीदी,
नाम रखा उसका मिम्मी।
मेरे पास है निम्मो ,
जो है एक मछली,
निम्मो मेरे अलमारी में है दिनभर लटकती।
डिम्पी रहती है दिन्धर बैठी, पास उसके है मिम्मी भी।

बचपन याद आ जाता है, देखकर इन गुड़ियों को,
दिन थे बड़े ही मस्ती के सारे वो।
नहीं थी नौकरी की चिंता,
नाही सुनने में आता था, कोई धोखे बजी का किस्सा।
दोस्त सब तब साथ होते थे,
जो आज बस याद आतें हैं।
00.10 am, 18th nov 2009.

Sunday, August 8, 2010

जब भी प्यार जताया, वो मुझसे छूट गया.

किसे फर्क पड़ता है? किसी को मैं कितना भी चाहूँ?
किस्मत में मेरे उतना ही प्यार है,जितने की मैं हकदार हूँ.
इस जनम में तो सबसे प्यार किया,
जिसको जितनी करनी थी, उससे भी ज्यादा उसे प्यार दिया.
जिसके लिए दुनिया भुलाने चली थी,
उसने मुझे कब का भुला दिया.

फिर एक दिन-अच्छी इंसान समझ, किसी को दोस्त बनाया,
उसने अचानक बिना कुछ कहे, मुझसे बोलना बंद कर दिया.
अब तो डर लगता है, प्यार दिखाने में अपनों से,
क्यूंकि जब भी प्यार जताया, वो मुझसे छूट गया.
2.56 pm
8th aug 2010.

Friday, July 30, 2010

नमूना है हम्हारी नादानी का.......

ऐसा क्यूँ होता है, दौड़ते हम उसी के पीछे,
जो कभी होता नहीं हम्हारे लिए.
सपने सजाते हैं उसी से, जिसको कोई ज़रुरत नहीं पड़ती हमसे.
तम्मना करते हैं पाने का उसे,
जो कभी बना नहीं था हम्हारे लिए.
प्यारा होता है वो सबसे ज्यादा,
जिसको कभी प्यार नहीं होता हमसे.
भाता नहीं दुनिया मैं और कोई उसके सिवा,
जिनको खबर भी नहीं हम्हारे इस एहसास का.
दिन रात बिताते हैं इसी सोच में,
के एक दिन उनको इल्म होगी हम्हारे मोहब्बत का,
आयेंगे लौटकर वो जब महसूस होगा उनको हम्हारी तड़प का.
एहसास होगा उनको, ज़माने में कोई नहीं उन्हें हमसे ज्यादा चाहने वाला.
कहीं ऐसा तो नहीं? यह नमूना है हम्हारी नादानी का?
1st november 2008

Sunday, June 27, 2010

सपने मैं अब भी देखती हूँ,

नहीं है वो कहीं, पर हर तरफ वो ही तो है,
ज़िंदगी ने मुझे उससे दूर कर दी है।
जो लोग कहते हैं भूल जाओ उसे,
पता है मुझे, नहीं देखा जाता मेरा दुखी चेहरा उनसे।

अकेलेपन में मैं रोटी ज़रूर हूँ,
पर मैं कोई नादान कमज़ोर इंसान नहीं हूँ।
मुझे मेरे भविष्य की फ़िक्र है,
तभी तो मेरे सपने अब भी जिंदा है।

सपने मैं अब भी देखती हूँ,
बस आशीर्वाद ईश्वर का हर पल चाहती हूँ।
2.10 a.m
25th april 2010.

जब तक मेरा दिल धडके मेरे दिल में ही रहो ।

सुबह -सुबह उनके दर्शन मैं करती हूँ,
नहीं चाहती मैं किसी और को देखूं।
आसन से चलकर मेरे मन में आ बसों,
जब तक मेरा दिल धडके मेरे दिल में ही रहो
मेरे अशांत मन को अपनी महिमा से शांत करो,
आंसू भरी मेरी दोनों आखों को,
खुद अपनी हाथों से पोछो.
दुनिया में बहुत भक्त होंगे आपके,
मैं भी तो एक भक्त हूँ उन सब में।
1.55 a.m
20th april 2010.

मुझे ना छुना चांदनी,

मुझे ना छुना चांदनी, मुझ पर हक़ है मेरे महबूब की।
भिगोना नहीं अपने जल से ऐ काले बदल,
दिख गए गर वो, शर्म से हो जाउंगी मैं जल जल।
ठंडी हवा ना उड़ना मेरे केसुओ को,
वर्ना मिल जायेगा उन्हें मौका छूने का इनको।
नहीं चाहती मैं, चिड़ियाँ तुम चेह्चाहाओ इतना,
की मिल जाये पास आके, उनके बात करने का बहाना।
बिजली तुम तेज़ ना कड़कना,
बदल ज़रा धीरे गरजना,
डर लगता है मुझे तुमसे,
पड़ ना जाये तुम्हारे गर्जन से, मुझे उनके बाँहों में जाना।
मैं तो चाहती हूँ वो खुद आये मेरे पास,
अपनी मोहक बातों से, दिलाये मुझे प्यार का एहसास।
३.३० ऍम
16th april 2010.

नहीं लगती अकेलेपन से डर,

बुरी नहीं होती तनहा ज़िंदगी,

अगर वो लाये अपनों के चेहरे पर हसी।

नहीं लगती अकेलेपन से डर,

जब याद आ जाये, बिताया हुआ अपनों के साथ का पल।

मैंने सुना है लोगों को तन्हाई को कोसते हुए।

क्या पता उन्हें? तन्हाई कितने काम आये?

मैंने तन्हाई को अकेलेपन का सहारा बनाया,

इसी तन्हाई में ख़ुशी का गीत गुनगुनाया,

आगे की सुनहरी ज़िंदगी के लिए सपना सजाया,

और इसी तन्हाई ने मुझे मौका दिया,

मेरे अंदर छुपी हर हुनर को पहचानने का।

2.37 am

13 april 2010.

आना होगा एक दिन मुझे तुम्हारे पास।

मेरे गाँव से होकर गंगा बहती है,
अपना शीतल जल हम्हारे लिए,
पहाड़ो से बहाकर ले आती है।
मेरा बचपन इसी के किनारे बीता,
मैंने कई दोपहर यहाँ खेलकर गुज़ारा।

एक बार नाव पर बैठकर, की थी मैंने गंगा मैया पर सवारी,
याद है मुझे उस दिन नाव पर बैठे-बैठे, दादाजी को गीत सुना रही थी।
माझी ने भी मेरे साथ सुर मिलाया था,
हम्हारे गीत से खुश थी गंगा मैया।

आज मैं उनसे बहुत दूर हूँ,
अपने पांच मंजिला घर में उन्हें याद कर रही हूँ।
माँ कभी नहीं भूलती अपने बच्चों को,
तभी तो सागर से कहा है मेरी रखवाली करने को।

मैं हमेशा सोचती थी, क्यूँ प्यार है मुझे सागर की लहरों से?
क्यूँ पसंद है शहरों में येही शेहेर मुझे?
ज़िंदगी के कई साल बीत गए ,
इसी सवाल के जवाब के लिए।

संतान चाहे जहाँ भी रहे,
माँ का दिल हमेशा उसके पास दौड़ता है।
वो चाहे खुद ना जा सके,
पर उनका ध्यान हर पल संतान पर रहता है।

मेरे लिए वो अपने दुसरे संतानों का कैसे त्याग करे?
तभी तो सागर से मिलके , कहा है मेरा ख्याल रखे।
गंगा मैया यहाँ नहीं है तो क्या हुआ?
मिलती रहती है मेरी खबर उसे,
सागर के ज़रिये।

मैं चाहे कुछ भी बन जाऊ
आना होगा एक दिन मुझे तुम्हारे पास।
मत बहाना अपने आंसू उस दिन,

क्यूँ की नहीं रहेगी इस शारीर में उस दिन प्राण।
४.०५ प.म
७थ फेब २०१०.


नहीं भागुंगी सपनो के पीछे,

मेरा मन हमेशा से गायिका बन्ने का था,
पर फ़र्ज़ ने हमेशा मेरे बड़ते क़दमों को रोका।
मेरे लिए मेरे सपनो से बढकर थी मेरे माता पिता की इच्छा,
की मैं पडू बहुत ज्यादा।

मैंने उच्च शिक्षा हासिल की,
मेरे माता पिता की इच्छा पूरी हुई।
इसी बीच मेरे गायिका बन्ने की इच्छा और प्रबल हो गयी।
मैंने कोशिश तो ज़रूर की, शयेद मुझमें ही कहीं कमी रह गयी।

जब-जब मैं किसी प्रतियोगिता में गयी,
मेरे जीत के सामने हमेशा हार आ गयी,
मेरे आत्मविश्वास को हमेश गिरती गयी।

अब मैंने ठान लिया है,
नहीं भागुंगी सपनो के पीछे,
चाहे वो मुझे कितने ही सुहावने लगे।
मैं जीऊँगी सच्चाई में,
उन अवसरों पर जो ईश्वर ने मुझे प्रदान किए।
उन्ही को बनाउंगी अपना ढाल,
उन्ही के बदौलत बनूंगी अपना नाम।

गाऊँगी अब मैं सिर्फ मेरे लिए,
मुझे नहीं बनना गायिका,
नहीं गाना कोई गीत,
किसी शोहोरत के लिए।
१.५० ऍम
१९ जन 2010

Saturday, June 26, 2010

सोचा था नहीं करुँगी याद

ना चाहते हुए भी आती है पुराणी बातें याद,
यादें जो छोड़ चुकी है, एक गहरी दाग.
सोचा था नहीं करुँगी याद ऐसी कोई भी बात,
जो बिताई थी तुम्हारे साथ.

देती हूँ सलाह दूसरों को,
की आसान है भुलाना बीते बातो को,
पर क्या पता यह उनको?
की हम भी कभी कभी करते हैं याद उन लम्हों को.

था पूरा यकीं मुझे खुद पर,
भुलाने के लिए चाहिए थे कुछ पल.
पर कुछ घाव इतने गहरे होतें हैं की,
छोड़ जाते हैं दाग ज़िंदगी भर.
9.30 pm
23rd nov 2009

छोड़ कर सब रिश्ते नाते, चल दूंगी मैं साथ तुम्हारे.

करना तुम इंतज़ार मेरा,आउंगी मैं निकलते ही चाँद के.
छोड़ कर सब रिश्ते नाते, चल दूंगी मैं साथ तुम्हारे.
करूंगी नहीं कभी किसी बात की शिकायेत तुमसे,
ना ही कहूंगी की, "याद आते हैं मुझे मेरे अपने".
पल भर आंसू ही सही, पर ज़िंदगी का मेरा सपना है तुमसे.

निकल आया है चाँद आसमान पर,
रास्ते चांदनी से जगमग हैं.
मेरा सपना तुम्हारे साथ ज़िंदगी का,
अब कुछ ही पल में मुकम्मिल है.

छोड़ चली मैं अपनों को पीछे,चल रही हूँ चांदनी की राह में.
साथ मेरे चल रही है, सपने सुहावनी ज़िंदगी के.
इस आस में की, मिल जाओगे तुम, कहीं इंतज़ार मेरा करते हुए,
बस चलती जा रही हूँ, जहाँ तक चांदनी मुझे ले जाए.
जिस पल दीखोगे तुम मुझे, लग जाउंगी मैं गले तुम्हारे.
न्योछावर होगी यह ज़िंदगी तुम पर, मेरा जीवन होगा तुम्हारे लिए.
फ़ैल चुकी है चांदनी पूरे आसमान में,धरा पर जुगनुओ से भी रौशनी है.
मैं अकेली चली जा रही हूँ,साथ में चल रहा मेरा सपना है.

क्यूँ हो रही है थकान मुझे?
रुक क्यूँ गयी हूँ मैं?
क्यूँ नहीं दीखता मुझे कोई?
मेरा सपना भी मेरे साथ नहीं है.

मैं तो चल पड़ी थी मिलने को तुमसे, पर तुम नहीं आये वादा करके मुझसे.
आंसुओ को बहने से ना रोक पा रही हूँ, पीछे मुड़ कर जा नहीं पाती.
करके मैं एभारोसा तुमपर, रुलाया अपने साथ अपनों को भी.
चांदनी हट रही है आसमान से, मैं हूँ अब भी वाही खडी,
कहाँ गया सपना साथ छोड़ कर मेरा?
इंतज़ार करुँगी, फिर से चांदनी रात की.
6.45 am.
22 april 2009

Friday, June 25, 2010

सरद ऋतू का त्यौहार.

कानो में गूंजती है मेरे आवाज़ ढोल काशे की,
करती हूँ मैं इंतज़ार साल भर से, उस एक हफ्ते की.
सरद ऋतू का सुहावना मौसम,ग्रीष्म से दूर, नाही कड़ाके की सर्दी,
इसी वक़्त आती है धरती पर घूमने,मिलने अपने संतानों से, महिषासुर मर्दिनी.

त्यौहार ये याद दिलाता है, बुराइयों पे अच्छे का,
और नारी के असीम शक्ति का.
मेरे लिए यह दिन है अच्छे नए कपड़ो का,
दोस्तों से मिलके मस्ती का,और एक हफ्ते की लम्बी छुट्टी का.

इस साल माँ तुम आना, पिटारी भर वरदान लेके,
नहीं सोये कोई गरीब मेरे देश में, रात को भूखे.
करना अपने अस्त्रों का प्रहार उस असुरों पर,
जिन्हें इर्ष्य है हम्हारे देश की सुख शांति पर.
फिर देना अपने आशीष भरे हाथ मेरे देश की मिटटी पे,
ताकि साल भर रहे हम्हारे खेत हरियाली से लहलहाते.
जाते जाते बरसा जाना अपनी करुना,
जिससे ग्रीष्म में बहे हमारी नदियों में तीव्र जल धरा.
4.20 am
9th sept 2010

Thursday, June 24, 2010

बीत चुकी वो रातें जब जगे रहना हमारी आदत थी

बीत चुकी वो रातें जब जगे रहना हमारी आदत थी,

हाथों में किताबें लिए, रात भर पढ़ना हमारी चुनौती थी.

जगे रहना रात भर, सुबह-सुबह बस का इंतज़ार,

हर रोज़ बस स्टॉप पे एक ख़ास चेहरे का दीदार,

जिस से करने को बातें होता था मन बेकरार.

हम आठ लार्कियाँ, थे सारे शैतानो की नानी,

जलते थे बाकि सब, दोस्ती से हमारी.

दिन वो बड़े ही सुहावने थे, जब हम सब साथ पड़ते थे,

एक साथ खाते थे, घूमते थे साथ में.

होती थी हमारी जेबे खली,पर पास हमारे सपने बेशुमार थे.

व्यस्त हैं आज हम सभी अपनी ज़िंदगी में,

पैसे हैं सबके पास, पर हम साथ नहीं हैं दोस्तों के.

खो गए हैं सरे सप्नेआखों से,

हर किसी को चिंता है आगे की ज़िंदगी के.

2.50 am

9th sept 2009.

क्यूँ है दिल को समझाना मुश्किल इतना?

क्यूँ नहीं रोक पाती हूँ मैं, उसको ख्यालों में आने से?
नाही इज़हार कर पाती हूँ मैं अपने प्यार का उससे.
क्यूँ नहीं रोक पति हूँ मैं खुद को उस से मिलने से?
नाही कह पाती हूँ , "मुझे मिलना हैं तुमसे".
क्यूँ नहीं लगता उससे प्यारा और कोई?
नाही कह पाती हूँ मैं हूँ तुम में खोई.
क्यूँ है दिल को समझाना मुश्किल इतना?
नाही चाहती हूँ दिल को समझाना.
क्यूँ नहीं बन सकता वो कभी मेरा?
नाही ही बता पा रही हूँ, माना है मैंने तुम्हे अपना.
क्यूँ नहीं बनाया गया उसे मेरे लिए?
नाही चाहती हूँ, शामिल हो वो कभी मेरी ज़िंदगी में.
12.15 am
24th march

सपने मैं देखती नहीं,

सपने मैं देखती नहीं, हकीकत पर जिंदा हूँ.
सपने मैं दिखाती नहीं, क्यूंकि उनका टूटना महसूस करती हूँ.
अनजान रास्तों पर चलती नहीं, खो जाने से डरती हूँ,
अनजान राहों को चुनने से दूसरों को मैं रोकती हूँ.
खुद को दूर रखती हूँ, महफ़िल में अकेली रहती हूँ,
कोई दोस्त बना कर भुला ना दे इस बात से मैं डरती हूँ.
बगीचे से फूलों को मैं चुनती हूँ,उनके पल में मुरझाने के डर से, उन्हें सिर्फ निहारती हूँ.
दोस्तों की तृष्णा मिटाती हूँ, तृष्णा मिटते ही चले जायेंगे,इस बात पर खुद से खफा मैं रहती हूँ.
19th feb 2009

Wednesday, June 23, 2010

बहुत दिनों के बाद गीत गुनगुना रही हूँ.

आज मैं बहुत खुश हूँ, बहुत दिनों के बाद गीत गुनगुना रही हूँ.
अनजान हूँ ख़ुशी के वजह से, मोहब्बत सी हो गयी है इस जहाँ से.
थिरकते हैं पाओ मेरे गीत के धुन पर,
मनन करता है उड़ जाऊं ज़मीन से फलक तक.
कोशिश में हूँ जान ने की वजह ख़ुशी की,
शयेद आया है कोई करती थी मैं इंतज़ार जिसकी.
यह एहसास देता है दिल को सुकून बहुत,
काश वो भी कर ले मेरी इस बात को महसूस.
नहीं करता है मनन उससे दूर जाने का,
नाही उसे जाने देने का.
पता है मुझे, बना नहीं है वो मेरे लिए, ना ही मैं उसके लिए.
फिर भी रहेगा मेरा प्यार शाश्वत हमेशा के लिए.
23rd
march

Saturday, June 19, 2010

ऐसा कभी नहीं हुआ जब मैंने होली नहीं खेली.

साल का यह दिन, जब आती है होली,
ऐसा कभी नहीं हुआ जब मैंने होली नहीं खेली.
मुझे पसंद है चेहरे रंगबिरंगी,
और गाते झूमते मस्ती करती टोली.

लाल हरा नीला पीला,
हवा में रंग है चारो और फैला.
सागर किनारे होली खेलने
का,मज़ा ही है होता निराला.

होली के दिन गर मौसम हो मेघा,
और धरती रहे चारो और हरा भरा,
हलकी सी धुप बनाये धरती सुनहरी,
इन सुबके बीच होली भी होती है मस्ती वाली.
इस साल की होली पर मैं हूँ अकेली,
कोई नहीं है प्रियतम, पर कई हैं सहेली.
रंगों का यह हरा भरा त्यौहार,
क्या इस साल लाएगा जीवन में प्यार?

नम्रता (This is dedicated to my manager)

वैसे तो मैं बहुत लोगों से मिली हूँ,
जिनसे मैं बहुत बातें करती हूँ,
मेरी काबिलियत को तुमने पहचाना,
और मुझे उनसे परिचय करवाया.
नहीं पता था की मैं किसी लायक हूँ,
किसी ज़िम्मेदारी को निभा सकती हूँ,
तुमने मुझपे किया भरोसा,
अब मेरी बारी है उन्हें निभाना.
ऐसा क्यूँ नहीं हो सकता?
की हम हमेशा साथ काम करे?
मैं हर काम में जीत हासिल करूँ,
और हम तुम मिलकर हर बाज़ी जीतें?
यह तो तै है हमें होना अलग है.
पर जितने दिन साथ हैं,
वादा रहा जीत हमारी है.

मेरी छुट्टियाँ.

क्या किया मैंने शनिवार को?
पूछते हैं लोग मुझे.
पूरे हफ्ते की थकान के बाद,
दो दिन गुज़र गए सोते -सोते.

याद है जाना था सहेली के जन्मदिन पर.
पर दर्द से फटा जा रहा था मेरा सर.
सो गयी रात के ग्याराह बजे शनिवार को,
जब नींद खुली तो देखा,
बज रहे थे घडी में शाम के,
दस मिनट पांच बज कर.

बिना किसी रोक टोक के,
सोयी रही मैं पूरे आठ्रह घंटे.
ऐसी बीतती हैं छुट्टी मेरी,
कट जाता है नाता मेरा पूरी दुनिया से.

अगले जनम अगर मैं मनुष्य बनी,

अगले जनम अगर मैं मनुष्य बनी,
नहीं भेजना भगवन तुम मुझे और कहीं.
जब मैं अपनी नन्ही आखें खोलूं,
बिना जात-पात, भेद-भाव वाला भारत देखूं.

जब समझने लगूं दुनिया दारी को,
मान्यता मिले मेरी कामयाबी को.
जब लेने जाऊं दाखिला विश्वविद्यालय में,
ना देना पड़े अतिरिक्त दक्षिणा, अनारक्षित होने के वजह से.

ऐसे भारत को अगले जनम में पाऊं,
जहाँ हर किसान की पूजा हो.
ना करे वो ख़ुदकुशी क़र्ज़ के दर से,
उनकी कमाई हो ज्यादा हर किसी से.

अगले जनम जब किसी से प्यार करूँ,
मुझे ज़माने का दर ना हो.
उस समाज में ऐसे माता-पिता हो,
जिन्हें जात-बिरादरी से ज्यादा, बच्चो की ख़ुशी की चाह हो.

Wednesday, April 28, 2010

काश मैं एक पंची होती

काश मैं एक पंची होती,
मुक्त मैं गगन में उडती रहती,
एक ही जगह बसे रहने का बंधन नहीं होता,
पूरे धरती पर विचरण करती.

किसी भी देश में घूमने जाती,
जब तक मन करता वहीँ रहती,
फिर किसी और देश को देखने जाती,
नहीं होती लेनी किसी की अनुमति.

जहाँ तैरती वहीँ अपना घोसला बनती,
किसी भी पेड़ पर रहने लगती,
उस शेहेर से जी भर जाते ही,
अगले महादीप के लिए उड़ने लगती.

Tuesday, April 27, 2010

लौटकर आऊंगा वापस ना जाने को.

मैं हूँ दूर बहुत तुमसे,मुझे आती हो याद हर पल,

तुम्हारी मोहक सुन्दरता कर देता है मन मेरा चंचल.

दिखी थी आखरी बार, तुम मुझे बादलों के बीच से,

और मन मेरा बेचैन था, होने पर जुदा तुमसे.

वैसे तो बिकती है यहाँ जीवन की हर ख़ुशी,

चैन मन को देता हो जो, वो हो तुम्ही.

कहाँ सोचा था मैंने? जाना होगा दूर तुमसे,

वादा करता हूँ मैं,जब आऊंगा लौटकर,गर्व होगा तुमको मुझपे.

आज मैं जो भी हूँ,तुम हो वजह उसकी,

दूर देश में नाम हो मेरा,तुम भी तो चाहती थी.

इन्होने मुझे अपनाया,किया मेरा स्वागत है,

चाहे जितना भी प्यार मिले, प्यार मुझे तुमसे ही है.

आ रहा है मित्र मेरा अगले महीने मिलने मुझसे,

भेज देना मिटटी थोडीसी वतन की उसके हाथों से.

लौटकर आऊंगा वापस ना जाने को,

काम ऐसा कर आऊंगा, जिसे पहचाने पूरी दुनिया तुमको.


यह कविता उन प्रवासी भारतीयों के लिए है जो अपनी देश के नाम को उचा करने के लिए विदेशो में बसे है, पर उनको भारत की याद हमेशा आती है. हवाई जहाज़ में खिड़की से अपनी देश की मिटटी को तब तक देखते हैं जब तक बादलों के बीच ना पहुँच जाये.

मेरी पहचान उससे बचपन से है.

देखा है इस चेहरे को कई बार,चाहा है मैंने इसे बेशुमार,
प्यारी लगती है मुझे इसकी आखें और उनमें बसे सपने,
सपने ऐसी ज़िंदगी के जहाँ हर पल कामयाबी चूमे कदम उसके.
इस चेहरे पर दिखती है सदा हसी,जो औरो को देती है सदा ख़ुशी,
पर नहीं जानते लोग ये की, इस हसी के पीछे है कई गम भी.

जानती हूँ मैं इसे बचपन से,प्यार भरा है बहुत सारा इसके दिल में,
इतना जितना, पानी भी नहीं सागर में.
दिल में छुपा के सारा गम, प्यार करेगी अपनों से.
नहीं देखा किसीने इसको रोते,है वह चुलबुली बहुत, सुना है लोगों को कहते,
पर मुझे पता है, गुजारती है ये अपनी रातें रोते रोते.

ईश्वर पर है भरोसा उसे, डरती नहीं है कभी मेहनत से.
भरोसा है उसे अपनी पूजा पर, मिलती है मन को शांति उसे इसीमें.

Sunday, April 25, 2010

मेरा खुद से वादा

वादा है मेरा मुझसे,नहीं रुलाउंगी खुद को कभी,

चाहे कैसी भी हो परेशानी, चेहरे पे रहेगी हमेशा हसी.

मांगू मैं शमा मुझसे,रुलाया है मैंने इसे कई बार,

नादानीया मेरी अब तक की, जिनके लिए मैं हूँ शर्मसार.

विनती करती हूँ खुद से, ना होना उदास कभी,

सपने जितने देखे हैं पूरी करुँगी मैं वो सभी.

आदेश है मेरा मुझसे,थक के ना रुकना कभी,

सहारा मेरा रहेगा हर पल, चलते चलते रुक जो गए कहीं.

आगाह करती हूँ खुद को, ना करना सभी से दोस्ती,

सच्ची दोस्त मैं बनूँगी तुम्हारी, जब तक तुम मुझमे बसी.

2.15 am 3 sept 2009

काले में है सुन्दरता बसी

काले में है सुन्दरता बसी, तभी तो रात कलि है,
दिन भर के थकान के बाद करते हम रात का इंतज़ार हैं.
काली होती है मधुर बहुत तभी तो कोएल काली है,
साल भर के इंतज़ार के बाद करते हम वसंत का इंतज़ार है.
काली होती घनेरी बहुत तभी तो केसू घनेरे हैं,
अशांत दिमाग को मिलता चैन इसके तले है.
काली होती शक्ति का प्रतीक है, तभी तो माँ काली है,
बड़ी डरावनी है काया उनकी,फिर भी पूजी वह जाती है.
काली बनाती है सुंदर बहुत तभी तो काजल काली है.
जैसे ही लगती है आखों पर, देती उन्हें सुन्दरता है.
काली होती है मोहक बहुत, तभी तो बिंदी काली है,
लगते ही किसी युवती के माथे, खिलता उसका चेहरा है.
4th april 20091.30 am.

मुझे इतनी मोहलत दे ऐ खुदा

मुझे इतनी मोहलत दे ऐ खुदा,

की सारे सपने पूरे कर सकूँ.

खुद को जब देखूं आईने में ,

तो एक मुक्कमल इंसान नज़र आऊं.

Saturday, April 24, 2010

विशवास चमत्कार का, मुझे आप पर है.

कहाँ थी मेरे विशवास में कमी,
की आपने मुझे यह दिन दिखाई?
मैंने हर बाधा को परीक्षा माना,
बिना किसी शिकायत किए उसे अपनाया.
मेरी हर जीत का श्रय जाता है आपको,
फिर हार पर क्यूँ दूं दोष किसी और को?
मेरी सुबह शाम सब आप हो,
फिर क्यूँ दोष दूं हार पर किस्मत को?
गृह तारे अगर किस्मत बनाते हैं,
तो क्यूँ पूजता है संसार ईश्वर को?
पत्थरों का पहनना अगर पलट दे हार जीत में,
तो कोई क्यूँ करे विशवास ईश्वर की भक्ति में?
नहीं जानती कौन सा गृह मुझे हार दिखता है?
पर विशवास चमत्कार का, मुझे आप पर है.

Thursday, April 22, 2010

प्यारी स्वाति

मैंने तुम्हे देखा उन लम्हों में,
जब तुम्हे मैं जानती थी बाकि लोगों में.
तुमसे मेरा हर दिन बातें करना,
तुम्हारे हर मज़बूत इरादों को तुम्हारी बातों में सुन ना,
दुनिया की हर बुराई से अकेले लड़ना ,
हर गम को भुलाकर, सबके साथ हसी मज़ाक करना.
तुम्हारी ऐसी कई गुण , ऐसी कई बातें तुम्हारी,
बन्ने को दोस्त तुम्हारी, मुझे मजबूर करती.
दोस्ती ने मुझे तुम्हारी, बनाया है आज एक काबिल लड़की,
किसी भी कठिनाई से अब मैं नहीं डरती.

तुमने अपना वो मुकाम बनाया,
पहुचना चाहता है हर कोई जहाँ.
तुमसे मुझे मिलती है प्रेरणा,
जीतने की अकेले कोई भी समस्या.
एहसास दिलाया है तुमने मुझे,"हो तुम अकेले इस दुनिया में",
"और रहना तैयार खुद को किसी भी मुश्किल से सामना करने".

काश दिन के घंटे ज्यादा होते!

करना है काम बहुत सारा,
कहाँ से शुरू करूँ? नहीं चल रहा है पता.
बिस्तर पर सोये सोये याद आता है काम मुझे,
तरीके सोचती रहती हूँ, हर पल पूरे करने के उसे.
घंटे हैं दिन के चौबीस,
करने होते है काम इसी बीच छब्बीस,
देना होता है सबको वक़्त भी,
ध्यान रखना होता है काम को भी इसी बीच.
लगता है अब तो सहारा ईश्वर का ही है,
जो, कोई चमत्कार कर सकते हैं.
या तो मेरी नींद कम कर दे,
नहीं तो प्रार्थना है की दिन के घंटे बढ़ा दे.
2.15 am
13th april 2010.

Tuesday, April 20, 2010

कहने को बातें है बहुत

कहने को बातें है बहुत पर सुनता नहीं है कोई,
कितने गीत है गुनगुनाने ,को पर बोल देता नहीं है कोई.
आखें मेरी तरसती है किसी के नज़र को, पर दीखता नहीं है कोई,
मनं करता है प्यार करूँ किसी को, पर प्यारा नहीं है कोई.
चाह है बारिश के बूंदों की पर बदल नहीं है कोई,
पास है मेरे गुच्छा फूलों का, पर गुलदस्ता नहीं है कोई.
पानी से भरा झरना हूँ मैं, बहने के लिए पहाड़ नहीं है कोई,
कहते हैं दोस्त मेरे नगीना हूँ मैं, पर अंगुठी नहीं है कोई.
सुंदर मूरत हूँ मैं पर रंगता नहीं है कोई,
कहने को बातें है बहुत पर सुनता नहीं है कोई.
२८ जनुअरी २००९.
३.४० अ.म

मुझे सारे रंग आचे लगते हैं.

पसंद है मुझे रंग गुलाबी,
मुझपे ये लगती है सुहानी,
खिल उठता है मनं मेरा,
जो दिख जाये ये रंग कहीं भी.

वैसे तो रंग सारे मुझे पसंद है,
पर उनमें पिला सबसे उज्जवल है,
पहनो तो रूप रंग खिलता है,
हल्दी तो कीटाणु नाशक होता है.

काले में भी नहीं है कोई खराबी,
मोहक होती है कलि बिंदी,
गोरे चेहरे पे एक कला तिल,
सुन्दरता की होती है निशानी.
9.45 am 09 jan 2010.