Saturday, September 4, 2010

दिल की बात मानु? या दिमाग की?

मेरे अशांत मन को शांति की इच्छा है,
ऐसा क्या करूँ? की आवाज़ उठा सकूँ अन्य के खिलाफ मैं?
मन कहता है जो हो रहा, वो अच्छा है,
दिमाग कहता है,-"तुममे लड़ने की हिम्मत नहीं है"।
दिल की बात मानु? या दिमाग की?
ऐसा क्या करूँ, की दिल और दिमाग को मिले असीम शांती?

5.30 am,26th aug 2010.

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