मेरे गाँव से होकर गंगा बहती है,
अपना शीतल जल हम्हारे लिए,
पहाड़ो से बहाकर ले आती है।
मेरा बचपन इसी के किनारे बीता,
मैंने कई दोपहर यहाँ खेलकर गुज़ारा।
एक बार नाव पर बैठकर, की थी मैंने गंगा मैया पर सवारी,
याद है मुझे उस दिन नाव पर बैठे-बैठे, दादाजी को गीत सुना रही थी।
माझी ने भी मेरे साथ सुर मिलाया था,
हम्हारे गीत से खुश थी गंगा मैया।
आज मैं उनसे बहुत दूर हूँ,
अपने पांच मंजिला घर में उन्हें याद कर रही हूँ।
माँ कभी नहीं भूलती अपने बच्चों को,
तभी तो सागर से कहा है मेरी रखवाली करने को।
मैं हमेशा सोचती थी, क्यूँ प्यार है मुझे सागर की लहरों से?
क्यूँ पसंद है शहरों में येही शेहेर मुझे?
ज़िंदगी के कई साल बीत गए ,
इसी सवाल के जवाब के लिए।
संतान चाहे जहाँ भी रहे,
माँ का दिल हमेशा उसके पास दौड़ता है।
वो चाहे खुद ना जा सके,
पर उनका ध्यान हर पल संतान पर रहता है।
मेरे लिए वो अपने दुसरे संतानों का कैसे त्याग करे?
तभी तो सागर से मिलके , कहा है मेरा ख्याल रखे।
गंगा मैया यहाँ नहीं है तो क्या हुआ?
मिलती रहती है मेरी खबर उसे,
सागर के ज़रिये।
मैं चाहे कुछ भी बन जाऊ
आना होगा एक दिन मुझे तुम्हारे पास।
मत बहाना अपने आंसू उस दिन,
क्यूँ की नहीं रहेगी इस शारीर में उस दिन प्राण।
४.०५ प.म
७थ फेब २०१०.
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