Sunday, June 27, 2010

नहीं लगती अकेलेपन से डर,

बुरी नहीं होती तनहा ज़िंदगी,

अगर वो लाये अपनों के चेहरे पर हसी।

नहीं लगती अकेलेपन से डर,

जब याद आ जाये, बिताया हुआ अपनों के साथ का पल।

मैंने सुना है लोगों को तन्हाई को कोसते हुए।

क्या पता उन्हें? तन्हाई कितने काम आये?

मैंने तन्हाई को अकेलेपन का सहारा बनाया,

इसी तन्हाई में ख़ुशी का गीत गुनगुनाया,

आगे की सुनहरी ज़िंदगी के लिए सपना सजाया,

और इसी तन्हाई ने मुझे मौका दिया,

मेरे अंदर छुपी हर हुनर को पहचानने का।

2.37 am

13 april 2010.

2 comments:

  1. बुरी नहीं होती तनहा ज़िंदगी,

    अगर वो लाये अपनों के चेहरे पर हसी।
    बिलकुल सही बात।
    और इसी तन्हाई ने मुझे मौका दिया,

    मेरे अंदर छुपी हर हुनर को पहचानने का।
    तन्हाई मे ही आदमी को आत्मचिन्तन करने का अवसर मिलता है और उसे अपने अच्छे बुरे का पता चलता है। बहुत अच्छी लगी आपकी रचना।आभार।

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