Saturday, June 19, 2010

ऐसा कभी नहीं हुआ जब मैंने होली नहीं खेली.

साल का यह दिन, जब आती है होली,
ऐसा कभी नहीं हुआ जब मैंने होली नहीं खेली.
मुझे पसंद है चेहरे रंगबिरंगी,
और गाते झूमते मस्ती करती टोली.

लाल हरा नीला पीला,
हवा में रंग है चारो और फैला.
सागर किनारे होली खेलने
का,मज़ा ही है होता निराला.

होली के दिन गर मौसम हो मेघा,
और धरती रहे चारो और हरा भरा,
हलकी सी धुप बनाये धरती सुनहरी,
इन सुबके बीच होली भी होती है मस्ती वाली.
इस साल की होली पर मैं हूँ अकेली,
कोई नहीं है प्रियतम, पर कई हैं सहेली.
रंगों का यह हरा भरा त्यौहार,
क्या इस साल लाएगा जीवन में प्यार?

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