Thursday, June 24, 2010

सपने मैं देखती नहीं,

सपने मैं देखती नहीं, हकीकत पर जिंदा हूँ.
सपने मैं दिखाती नहीं, क्यूंकि उनका टूटना महसूस करती हूँ.
अनजान रास्तों पर चलती नहीं, खो जाने से डरती हूँ,
अनजान राहों को चुनने से दूसरों को मैं रोकती हूँ.
खुद को दूर रखती हूँ, महफ़िल में अकेली रहती हूँ,
कोई दोस्त बना कर भुला ना दे इस बात से मैं डरती हूँ.
बगीचे से फूलों को मैं चुनती हूँ,उनके पल में मुरझाने के डर से, उन्हें सिर्फ निहारती हूँ.
दोस्तों की तृष्णा मिटाती हूँ, तृष्णा मिटते ही चले जायेंगे,इस बात पर खुद से खफा मैं रहती हूँ.
19th feb 2009

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