मेरा मन हमेशा से गायिका बन्ने का था,
पर फ़र्ज़ ने हमेशा मेरे बड़ते क़दमों को रोका।
मेरे लिए मेरे सपनो से बढकर थी मेरे माता पिता की इच्छा,
की मैं पडू बहुत ज्यादा।
मैंने उच्च शिक्षा हासिल की,
मेरे माता पिता की इच्छा पूरी हुई।
इसी बीच मेरे गायिका बन्ने की इच्छा और प्रबल हो गयी।
मैंने कोशिश तो ज़रूर की, शयेद मुझमें ही कहीं कमी रह गयी।
जब-जब मैं किसी प्रतियोगिता में गयी,
मेरे जीत के सामने हमेशा हार आ गयी,
मेरे आत्मविश्वास को हमेश गिरती गयी।
अब मैंने ठान लिया है,
नहीं भागुंगी सपनो के पीछे,
चाहे वो मुझे कितने ही सुहावने लगे।
मैं जीऊँगी सच्चाई में,
उन अवसरों पर जो ईश्वर ने मुझे प्रदान किए।
उन्ही को बनाउंगी अपना ढाल,
उन्ही के बदौलत बनूंगी अपना नाम।
गाऊँगी अब मैं सिर्फ मेरे लिए,
मुझे नहीं बनना गायिका,
नहीं गाना कोई गीत,
किसी शोहोरत के लिए।
१.५० ऍम
१९ जन 2010
हार में भी जीत होती है.
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