Sunday, June 27, 2010

सपने मैं अब भी देखती हूँ,

नहीं है वो कहीं, पर हर तरफ वो ही तो है,
ज़िंदगी ने मुझे उससे दूर कर दी है।
जो लोग कहते हैं भूल जाओ उसे,
पता है मुझे, नहीं देखा जाता मेरा दुखी चेहरा उनसे।

अकेलेपन में मैं रोटी ज़रूर हूँ,
पर मैं कोई नादान कमज़ोर इंसान नहीं हूँ।
मुझे मेरे भविष्य की फ़िक्र है,
तभी तो मेरे सपने अब भी जिंदा है।

सपने मैं अब भी देखती हूँ,
बस आशीर्वाद ईश्वर का हर पल चाहती हूँ।
2.10 a.m
25th april 2010.

No comments:

Post a Comment