कानो में गूंजती है मेरे आवाज़ ढोल काशे की,
करती हूँ मैं इंतज़ार साल भर से, उस एक हफ्ते की.
सरद ऋतू का सुहावना मौसम,ग्रीष्म से दूर, नाही कड़ाके की सर्दी,
इसी वक़्त आती है धरती पर घूमने,मिलने अपने संतानों से, महिषासुर मर्दिनी.
त्यौहार ये याद दिलाता है, बुराइयों पे अच्छे का,
और नारी के असीम शक्ति का.
मेरे लिए यह दिन है अच्छे नए कपड़ो का,
दोस्तों से मिलके मस्ती का,और एक हफ्ते की लम्बी छुट्टी का.
इस साल माँ तुम आना, पिटारी भर वरदान लेके,
नहीं सोये कोई गरीब मेरे देश में, रात को भूखे.
करना अपने अस्त्रों का प्रहार उस असुरों पर,
जिन्हें इर्ष्य है हम्हारे देश की सुख शांति पर.
फिर देना अपने आशीष भरे हाथ मेरे देश की मिटटी पे,
ताकि साल भर रहे हम्हारे खेत हरियाली से लहलहाते.
जाते जाते बरसा जाना अपनी करुना,
जिससे ग्रीष्म में बहे हमारी नदियों में तीव्र जल धरा.
4.20 am
9th sept 2010
सुन्दर रचना।
ReplyDeleteदिल की गहराई से लिखी गयी एक सुंदर रचना , बधाई
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