Saturday, June 19, 2010

नम्रता (This is dedicated to my manager)

वैसे तो मैं बहुत लोगों से मिली हूँ,
जिनसे मैं बहुत बातें करती हूँ,
मेरी काबिलियत को तुमने पहचाना,
और मुझे उनसे परिचय करवाया.
नहीं पता था की मैं किसी लायक हूँ,
किसी ज़िम्मेदारी को निभा सकती हूँ,
तुमने मुझपे किया भरोसा,
अब मेरी बारी है उन्हें निभाना.
ऐसा क्यूँ नहीं हो सकता?
की हम हमेशा साथ काम करे?
मैं हर काम में जीत हासिल करूँ,
और हम तुम मिलकर हर बाज़ी जीतें?
यह तो तै है हमें होना अलग है.
पर जितने दिन साथ हैं,
वादा रहा जीत हमारी है.

1 comment:

  1. आपके लेखन ने इसे जानदार और शानदार बना दिया है....

    ReplyDelete