उगते हुए सूरज ने एक नया सवेरा दिया है मुझे,
ज़िंदगी को एक और नया दिन,
ये भी तो सच है, की घट चूका है जीवन से,
दिन गया है एक और छीन.
ऐसा नहीं है की खुशियाँ नहीं आती है मुझे,
पर नहीं ठैरती है वो ख़ुशी हमेशा के लिए.
गमो के पल लम्बे लगते हैं,
पर सूरज को क्या पड़ी है इससे?
पिछले शनिवार को मैं खुश थी,
दिल खोल कर हसी थी,
पता है तुम सुन नहीं रहे थे मुझे,
पर फिर भी मैं बोल रही थी,
क्यूँ की मैं उस पल को जी रही थी.
कितनी जल्दी बीत गया वो पल,
अभी तो आये थे चले जाओगे तुम कल.
खुशियाँ आती है देर से,और चली जाती है पलक झपकते.
पर सूरज को क्या पड़ी है किसीके दुखी होने से?
5.00 am
5th Feb 2010.
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