Sunday, February 7, 2010

सागर रूपी मैं.

तुम बहुत विशाल हो, अनंत हो,
बताओ कहाँ से आई हो ?
तुम्हे देखती हूँ तो मुझे मैं याद आती हूँ ,
खुद पे गुरूर करती हूँ .

तुम्हारे विशालता जैसा दिल है मेरा ,
सागर रुपी दिल में बहुत सारा प्यार है भरा .
जिस तरह पास तुम्हारे आके मिलता है सुकून ,
मेरे में छुपी प्यार ,को मुझे समझने वाले करते हैं महसूस .

तुम्हारे प्राण दाई अनंत गहराई में बस्ती है लाखों जीवन ,
मैंने भी संजोये हैं दिल की गहराई में एक सुन्दर मधुवन .
तुम एक अटूट हिस्सा हो इस धरती की ,
तुम से शुरुआत हुई है जीवन की .

पता है तुम कभी कुछ नहीं कहती ,
सिर्फ अपना प्यार लुटाने का धर्म निभाती .
मुझे पता है मैं भी कहीं हिस्सा हूँ तुम्हारा ,
तभी तो जीवन से प्यार है बहुत सारा .
चाहे मुझे कुछ मिले ना मिले इस जीवन से ,
पर जाते वक़्त चोर जाउंगी यादें सभी पहचाने वालों में .
10.30 pm
5th Feb 2010.

2 comments:

  1. Nice one. सिर्फ़ ये कि अन्तिम पन्क्ति में वो शब्द "छोर" होगा शायद|

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  2. हर रंग को आपने बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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